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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा पृथ्वी ज छे." ए न्याय प्रमाणे तमारो व्याधि ए बंनेथी ज चाल्यो जशे. छेदन करतां बाकी रहेला ते राणीना केशना दुःख हारी शांति-जळथी अने ते मंत्रीना छेदेला एवा पण बंने हाथथी तमारुं श्रेय (सुख शांति) करवा माटे हुं यत्न करीश." आ प्रमाणे कही बेवडो दुःखी थयेलो ते गुणवान् मंत्री राणी कलावतीनी पासे जई अंजलि जोडी बोल्यो. "देवी, पोताना तमोगुणमय दोषने लीधे राजा वेगथी घणी पीडा पाम्या छे. तथापि तमे तमारा गुणथी तेमने साजा करो. अहो! देवी, तमारा शीलनुं माहात्म्य केवु मोटु छे, के जेथी तमारा मस्तक उपर आ नवो केशपाश देखाय छे. मनुष्योने शीलथी अग्नि जल अई जाय छे. सर्प रज्जुना जेवो थाय छे, कालकूट विष अमृतना जेवू थाय छे अने शत्रु मित्र बनी जाय छे. हे प्रभावना गृहरूपदेवी! तमारा शांतिजळना जेवा केशजलथी राजानो रोग हमणां ज दूर थई जाओ." पछी ते मंत्री जल लावी ते वडे केश धोई, ते जल सुवर्णना कलशमां मूकी धर्मरुचि मंत्रीनी पासे आव्यो. ।।६००।। त्यां तेना बंने हाथ अक्षत अने पूर्वना छेदेला हाथ पडेला जोई ते हर्षथी बोल्यो-"अहो! तमारं शील देवोने पण दुर्लभ छे, सारा भावथी उत्पन्न थयेलो तमारो देवपूजानो प्रभाव अद्भुत छे, जेथी सुवर्ण पुरुषनी जेम तमारा छेदायेला बंने हाथ नवा थई गया. सत्पुरुषो उपकार करवामां अने असत्पुरुषो अपकार करवामां तत्पर होय छे. ते सत्पुरुषोना दृष्टांत रूपे चंदन, अगरू, कर्पूर अने शेलडी छे. हे स्वच्छ हृदयवाळा पुरुष, तमे विद्वान् छो, तेथी राजानी पासे आवो अने ते 'दोषाकर छे छतां तेनुं तमोग्रहथी हमणां ज रक्षण करो." आ सांभळी मंत्री धर्मरुचि सत्वर उठीने राजानी पासे आव्यो अने तेणे पोताना हाथथी ते अमृतरूप जलवडे राजाना संतापने छेदी नांख्यो. राजा परिताप रहित थयो छतां पण ते पश्चात्तापमां परायण थई गयो. रुचिथी धर्मरुचिने खमावी ते आ प्रमाणे स्तुति करवा लाग्यो-"हे मंत्रीन्, कांताने मोठे कलंक आपनारा अने पवित्र एवा धर्मरुचि मंत्रीने दोष दृष्टिथी दोष रूपे जोनारा आ चंद्रोदरने ओळखी ल्यो. आ कर्मथी मारुं मुख्य उपमान सत्वर चाल्युं गयुं छे, तेथी सारे दिवसे पण मने सूर्यथी अधिक ताप थयो छे." राजाना आवा वचन सांभळी मंत्री बोल्यो, "राजा, संताप करो नहीं. हे ईश! राजा तो लोकोना कर समूहने छेदे छे पण ते देवताने लईने पाछा 'सुकर 1. दोषाकर-दोषोनी खाणरूप पक्षे दोषा-रात्रिने करनार चंद्र. 2. तमोग्रह एटले अन्नान रूप तम-अंधकारनो ग्रह-ग्रहण पक्षे तमोग्रह एटले राहु. 3. कर समूह एटल राज्य तरफथी लेवाता करनो समूह पक्षे कर समूह-हाथनो समूह. 4. देवताना प्रसादी पाछा सारा करहाथ मळे छे.
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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