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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा कष्टवाळा पुरुषनी रक्षा करी नहीं. विवेकी मनुष्योने सर्व पापोने हरनारा श्री सर्वज्ञ देव तो मुक्तिने माटे सेव्य छे अने बाकीना बधा देवो आ लोकना कार्य माटे मान्य छे. ते देवताओ परम धर्मने धारण करनारा आ मंत्रीने जो सहाय नहीं करे, तो पछी आ पृथ्वी उपर प्रभुनी भक्ति अने तेमनी शक्ति प्रगट नहीं थाय. " आ प्रमाणे धर्मना हितवाळी अने ध्यान रूपी धनवाळी कलावती चिंतवती हती, तेवामां तेणीए पोतानी दृष्टिए अति स्फुरायमान एवं एक तेज जोयुं. ते जोई आ शुं हशे? एम ते नृपकांता संभ्रांत थई गई. पेलो धर्मरुचि मंत्री तो धर्मकर्ममां विशेष सज्ज थई बेठो. ते वखते तरत दिव्यरूपने धारण करनार देवताए प्रत्यक्ष थई कलावतीने कह्युं, "वत्से तुं शा माटे संशय करे छे? श्री जिनशासनना देवताओ मोटा प्रभाववाळा छे अने तेओ प्रगट थयेला जिन भक्तोनी सान्निध्यमां आवे छे. ( सहाय करे छे.) जिन भक्तिमां परायण अने जिन भक्तोना शोक तथा संतापने हरनारी हुं पद्मावती नामे देवी छु, तमारा सान्निध्यमां रहीने शासननी प्रभावना करवा समीप आवी छं. हुं एवो यत्न करीश के जेथी तमारा बनेनुं उत्तम महत्त्व त्रण लोकमां तत्काल जणाई आवशे." आ प्रमाणेनां वचनोथी तेमना हृदयना मळने क्षालन करती अने तेमना दुःखने हरनारी ते दयाथी उज्ज्वळ एवी देवी अंतर्धान (अलोप) थई गई, आ समये दैवयोगे राजा चंद्रोदरने भोग रहित अने प्राणने हरी ले तेवी अकस्मात् पीडा थई आवी. ते काले आयुर्वेदने जाणनारा एवा विविध जातना वैद्यो खात्रीवाळा औषधो वडे तेनी विधिपूर्वक चिकित्सा करवा लाग्या. इंद्रने पण आकर्षवाने समर्थ एवा मंत्र, यंत्र अने तंत्रने जाणनारा चतुर मांत्रिको पण तेनो उपचार करवा लाग्या. निमित्तिआओ पण पगले-पगले पोतानुं निमित्त दर्शावता मंत्रपूर्वक ग्रहशांतिनो प्रयोग सत्य रीते करवा लाग्या तो पण त्यां अहोरात्र बुंबारव थवा लाग्यो. मंत्री वगेरे बधा दुःखी बनी गया अने राजाने विशेष पीडा थवा लागी आ समये सर्व मंत्रीओए एकठा मळी हृदयमां चिंतव्युं के, "वात, कफ अने पित्तने शमावनार औषधोथी उलटी वधारे पीडा थाय छे अने मंत्र वगेरेथी पण शांति थती नथी, तेथी आ कोई साध्य व्याधि नथी, पण देवताए करेली पीडा छे. तो देवताओए करेली पीडा देवताओथी ज शमी जाय छे. घोडाए पकडेली वस्तु घोडाथी ज चलित थई शके छे." आवुं विचारी तेओ बोल्या, "हे सर्व देवताओ तमे सांभळो, जेनाथी आ रोग जाय तेवुं हित कहो." ते वखते पेली शासन देवी पद्मावती ते मंत्रीओनी आगळ आकाशमां अदृश्य रूपे रही उंचे स्वरे बोली, "जे स्त्री मन, वचन अने कायाथी शुद्ध शील धारण करती श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 178
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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