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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा तो द्वेष करवो नहि, कारण के 'स्थिति अने प्रस्थितिनी इच्छा राखवी. हुं सदूप छं एवं मान कदिपण करीश नहि. अक्षरोने पण स्वरूपथी एवी रीते फेरफार थई जाय छे. तुं जो एवो थई जईश, तो पछी तने तत्त्वोनो निर्णय थई शकशे नहि. बाळको पण प्राणायामनी कलानी प्रतीक्षा करता नथी. हे भद्र! गुरुए कहेला प्रत्यक्ष अने परोक्ष ए बे प्रमाणोने तुं सदा मान्य करजे, जेथी तुं समदर्शी थई शकीश. तुं श्लोकना कर्तानी जेम वर्णविभक्ति, यतिसद्गुण, गुरु अने लघुने यथायोग्य पदमां स्थापन करजे. ।।३००।। हे वत्स! तारे सदा न्यायमार्गे रहे, उत्तम मनवाळा पात्रने दान आपq, देवतत्त्वनें हर्षथी ध्यान करवू, श्री गुरुना वर्णन, गान करवू; सदा व्यसननो त्याग करवो, सिद्धांतना सद्वचननुं पान करवं, गुरुए कहेला तत्त्वने मानवं, जे जीतवा योग्य होय तेने जीती लेवू, परोपकार करवो, पापमां हर्ष न करवो, पोताना अभिग्रह- स्मरण करवू, धर्मने उंचे प्रकारे धारण करवो. शास्त्रनुं चिंतवन सदा करवू, मित्रना हृदयने छेतरवू नहि, समय प्रमाणे सूर्बु, कुटुंबने जमाडवू, उतावळथी कार्य करवू नहि, गुरुना वचनने हृदयमा धारण करवं, कुकर्मने अटकाव, पोताना सुकृत्यथी दुःख समुद्रने तरी जवू, दुष्टनो संग छोडवो. कुकर्म करनारनो तिरस्कार करवो, गुण समूह मेळववो, मननो मेल धोई नाखवो, लीधेनुं व्रत पाळ, शरीर- बहु लालन करवू नहि, स्वीकारेला नियमथी चलित थq नहि, चरणवडे निर्माल्यनो स्पर्श करवो नहिं, धर्मर्नु कार्य छोडवू नहि, स्वजननी साथे भोजन करवू, मनने क्रोधमा जोडवू नहिं अने पोताना आत्मानुं हित करवं. हे डाह्या वत्स! कामी, सर्प, वेश्या, दुर्जन, शत्रु, रोग, जल अने अग्निनो विश्वास करीश नहि. ब्राह्मण स्त्री, गाय, बाल, वृद्ध, तपस्वी शरणे आवेल रोगी अने शस्त्र वगरना माणसने मारीश नहि. तुं कदी काननो काचो थईश नहि, तेम विश्वासघाती पण थईश नहि, गुणो मेळववामां संतुष्ट न थजे अने केवळ बहिर्मुख थईश नहि. सत्संगवाळो पोतानी स्त्रीमां 1. स्थिति प्रस्थिति एटले रहेQ अने चाल्या जवं. 2. अक्षरोमां पण व्याकरणना नियमोथी फेरफार थया करे छे. 3. बाळकोने प्राणायामनी कला स्वाभाविक रीते होय छे. 4. श्लोकनो कर्त्ता छंदना नियम प्रमाणे वर्ण-अक्षर, विभक्ति, यतिविराम वगेरे गुणोने अने गुरु तथा लघु स्वरोने तेना योग्य पदमां गोठवे छे तेम अहिं एवो बोध आपे छे के, तुं वर्णब्राह्मणादिना विभक्ति-विभाग प्रमाणे तेमनी माथे वर्त्तजे. यति सद्गुण-एटले मुनिओना सद्गुणो जाणी तेमज गुरु मोटा अने लव-नानाने तेमने लायक एवा पदमां राखजे(यथोचित साचवजे). श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 163
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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