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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा पण एकलो जेम गायनने गौरव आपी शकतो नथी, तेम ते बीजाने गौरव आपी शकतो नथी. हे वत्स, तुं तारा 'लक्षणमा समान पुरुषोनी साथे तारी एकता जोईने परनो लोप करी एक दीर्घता करीश नहीं, जो तारी इच्छा कार्यनी सिद्धि करवानी होय, तो कृत्य प्रत्यय धारण करजे, कारण के कृत अने तद्धित वडे ते सिद्धि थवानी छे, बीजाथी थवानी नथी. हे वत्स! नाम 15रक्षाने माटे सारी रीते विभक्तिनो त्याग करीश नहिं. ए विभक्तिथी सुशब्दोने पदनी प्राप्ति थाय छे. "हं सालंकार छं. एथी मारे 'छंदवृत्त वगेरे सद्गुणोनी शी जरूर छे?" एम तारे चिंतवq नहिं. कारण के सर्व प्रकारनुं साहित्य सर्वगुणवाळु कहेलुं छे. हे वत्स! तुं तारा हाथमा म्यान वगरनुं पण खड्ग राखजे. कारण ते बीजाने लक्ष्मी अर्पवामां आकार रहित नहिं थाय. जे पोताना वैरीओने भय आपे छे. पोताना स्वामीने गुण करे छे अने विग्रह-युद्धमां पृष्ट आपे छे, तेने धर्ममा जोडजे. "बधो पक्ष मारो छे, तेथी हुं सदा पक्षवाळो छु." एम हर्ष करीश नहिं कारण के ते जो विपक्ष-अवळो पक्ष.थई जाय तो ते विपरीत बनी जाय छे. "हुं क्षमाभृत् छु, तेथी मने विषयोथी शं थवानुं छे?" एवं चितवन करीश नहि केमके, स्त्रीओने नेत्रोना विषयमां लेवाथी ते विषयोने रस्तो मळे छे. एम कहेवाय छे. हे वत्स! 1तुं क्षमाभृत्ना पदने योग्य छे. तेथी तुं गुरुगुणो संपादन करजे, तारे शक्ति वडे 11अंग उपायथी पोतानी जाते सदा 12गण रक्षा करवी. सद्बुद्धिवाळा पुरुषे जो बीजो माणस पोतानो गुण ग्रहण करे तो हर्ष करवो नहि, तेम दोष ग्रहण करे 1. व्याकरणमां समान स्वरनी साथे परस्पर एक दीर्घता थाय छे, त्यारे एकनो लोप थाय छे.
उपदेश पक्षे तुं तारी समान एवा लोकोनी साथे एकता करजे. पण कोईनो लोप-अभाव करीश नहिं. 2. कृत्य प्रत्यय-व्याकरणना कृदंत प्रत्यय पक्षे कृत्य-कार्य उपर प्रत्ययविश्वास राखजे. 3. कृत-कृदंत, पक्षे करेल. 4. तद्धित प्रत्ययपक्षे तेनुं हित. 5. व्याकरणमां विभक्ति लगाइवार्थी नामनी रक्षा थाय छे अने विभक्तिथी शब्दोनी पदसंज्ञा पडे
छे. पक्षे साधु पुरुषोनी विभक्ति-विशेषभक्ति छोडवी नहिं. तेनाथी सारा शब्दोवाळामधुरभाषी एवा पुरुषोने सारा पदनी प्राप्ति थाय छे. 6. सालंकार-अलंकारे सहित पक्षे अर्थालंकार सहित. 7. छंदवृत्त-सारा छंदवृत्त, पक्षे छंद-स्वभाव-वृत्त-सदाचरण वगेरे गुणो. 8. गतकोश म्यान वगरनुं पक्षे धनकोशे रहित. 9. क्षमाभृत् एटले राजा पक्षे मुनि मुनि क्षमाधारी छे. पण जो विषयो तरफ प्रवर्ते तो ते भ्रष्ट थई जाय छे. राजा पण जो विषय तरफ प्रवर्ते तो ते राज्यभ्रष्ट थई जाय छे. 10. क्षमाभृत् राजा अने मुनि-राजा पक्षे गुरुगुणो एटले मोटा गुणा अने मुनि पक्षे गुरुना गुणो. 11. अंग-शरीर अथवा राज्यना अंग-मुनि पक्षे आगम. 12. राजा पक्षे गण रक्षा एटले समूहनी रक्षा मुनि पक्षे पोताना साधु समुदाय संघाडानी रक्षा.
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श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग