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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा आर्त तथा रौद्र ध्यानने छोडी सुबुद्धि पुरुषे ते मंत्रनो जप करवो. ते मंत्रप्रथमपद श्वेत छे, बीजुं पद कुंकुमवर्णी छे, त्रीजुं पद सुवर्ण रंगी छे, चोथं पद नीलरंगनुं छे अने पांचमुं पद कृष्णवर्णी छे, शांतिक पौष्टिना कार्यमां श्वेतवर्णी पद, वशीकरण तथा आकर्षणमां रक्तवर्णी, स्तंभनमां पीतवर्णी, मोक्षने अर्थे व्योम-आकाश रूप नीलवर्णी अने उच्चाटनना काम वखते कृष्णवर्णी पद ध्यावा. अने ते ते वर्णनी जपमाळा वस्त्रादिकनी साथे ग्रहण करवी एवी रीते पांच प्रकारचें ध्यान ए मंत्रमां दर्शावेलुं छे, हे राजा, ते जेवो अवसर होय ते प्रमाणे तारे तेनं ध्यान करवं. जो कदि जपमाळा न होय तो नंद्यावत वगेरेथी नवकार मंत्र गणवो पण ते गणवानो निश्चय छोडी देवो नहीं. जयने आपनारा ते नवकार मंत्रना जपथी संग्राम, समुद्र, जंगल, शाकिनी, भूत, सर्प, सिंह, वाघ, अग्नि व्याधि, असमाधि, शत्रुसमूह, विकार अने दारिद्रथी उत्पन्न थयेलो आ लोकनो भय प्राप्त थतो नथी. जो पुरुष ए मंत्रनो एक अक्षर पण एकाग्रपणे ध्यावे, तो ते सात सागरोपमना 'आयुष्यनो नाश करी शके छे. वळी ते सुबुद्धिपुरुष मनमां श्रद्धा लावी नवकारमंत्र पैकी एक समग्र पदवडे पचास सागरोपमनुं अने समग्र-संपूर्ण नवकारमंत्रवडे तो ते पांचसो सागरोपमनुं आयुष्य शीघ्र नाश करी शके छे.
___ आ प्रमाणे कही ते मुनि, राजा अने राणीने ते पंचपरमेष्ठि मंत्र अने तेनो विधि बतावी चाल्या गया अने पछी राजा पोताने घेर आव्यो. मुनिए कहेला पवित्र मंत्रनुं स्मरण करतां ते राजाराणीनुं दुष्ट अंतराय कर्म अत्यंत हलकुं थई गयु. ते पवित्र राजाने नमस्कार मंत्रना प्रभावथी अने सात्म्यभावथी (तेमां साते धातु रंगाई जवाथी तेमां श्रद्धा परिणति जागवाथी) राज्यनी वृद्धि, कार्यनी सिद्धि अने सर्व दिशाओमां प्रसिद्धि थई गई.
एक वखते रात्रे राजा जाग्रत थई आ प्रमाणे चिंतववा लाग्यो-"मारे नवकारमंत्रना प्रभावथी सर्व शुभ थयुं, परंतु सो वरदाननी प्राप्तिरूप मारुं कार्य हजु सिद्ध थयुं नथी. ते कार्य हजु पण मने संतापकारी अने दुःखकारी लागे छे." राजा आ प्रमाणे चिंतवतो हतो, तेवामां दैवयोगे भोगसहित (स्वहितकारी अने चकोर) राणी स्वप्नामां त्रास (भय-कलंक) रहित एवा पूर्णचंद्रनुं पान करी गई. जे पुत्रने माटे आ सनातन नवकार मंत्रनुं स्मरण करे छे, ते स्वप्नामां (पण) ससलाना चिह्न-लक्षण या कलंक सहित चंद्रनुं पान करतो नथी राणीए अमृतना 1. नरक नीच गति संबंधी. 2. पण कलंकरहित ज चंद्रन पान करे एवो अर्थ-ध्वनि निकळतो जणाय छे. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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