________________
भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा
कोईवार रस्तामां अने कोईवार अपरिमित एवा तेना स्थानमां जई ते तेने नमस्कार करवा लाग्यो. तेने तेम करतो जोई लोको तेने प्रणाममित्र कहेवा लाग्या. ते पण मनमां संतुष्ट थई तेने मनवांछित आपवा लाग्यो. आ प्रमाणे मंत्री शुद्धबुद्धि ते त्रणे मित्रोनी साथे रही उग्रशासन राजाना सर्व व्यापारना भारने केटलोक काल धारण करवा लाग्यो.
एक वखते मंत्रीराज पोताना नित्यमित्रनी साथे एक शय्यामां निद्रा लई जेवामां जाग्रत थईने बेठो थयो, तेवामां सर्व तरफ सर्वने लुंटनारा, स्वामीए प्रेरेला अने काळपुरुषना जेवा दुष्ट योद्धाओ हथीयार उगामी आवता तेना जोवामां आव्या. तेमने जोई मंत्रीए कघुं, "तमे अहिं शा माटे आव्या छो?" तेओए जवाब आप्यो के, "अमो अमारा स्वामी उग्रशासननी आज्ञाथी अहिं आव्या छीए अने दूषित कार्य करनारा वा तने आजे अमो तत्काळ कूवामां नाखवाना छीए." ते योद्धाओना आवा वचन सांभळी मंत्री बोल्यो, "मारो एवो कयो अपराध छे?" तेओए कहुँ, "तमारो शो अपराध छे, ए वात राजा उग्रशासन जाणे. अमो कांईपण जाणता नथी. अमारे तो तेमनो कठोर आदेश करवानो छे." ते सांभळी मंत्री शुद्धबुद्धि पोताना पेला नित्यमित्रने कह्युं, हे ईष्ट मित्र, मारी उपर राजा उग्रशासन क्रोध पामेला छे, तो तुं उठ आपणे क्यांय एवे स्थळे चाल्या जईए, के ज्यां रहेवाथी मने तेनो भय लागे नहीं. जेम अंधकार थवाथी लोको सूर्यनुं अवलोकन ईच्छे छे. तेम ज्यारे कष्ट आवी पडे छे, त्यारे माणस पोताना मित्रना मुखनुं अवलोकन करे छे. दातारनी परीक्षा दुष्काळमां थाय छे, प्रियानी परीक्षा निर्धनपणामां थाय छे, सुभटनी परीक्षा रणसंग्राममां थाय छे अने मित्रनी परीक्षा विपत्तिमां थाय छे. जलथी परिपूर्ण एवा सरोवरनी जेम ज्यारे समृद्धि होय छे, त्यारे सघळं सरखुं लागे छे, पण ते सरोवर ज्यारे सूकाय छे, त्यारे जेम ऊंचं अने नीचुं वर्त्ताई आवे छे. तेम ज्यारे निर्धनता आवे छे, त्यारे पोतानो अने पारकानो भेद देखायी आवे छे. "हे मित्र! पिता, माता, पुत्र, भाई अने सन्मित्रथी पण में तने वधारे राख्यो छे - पाल्यो छे, तो आ वखते हे डाह्या अने जगत्प्रिय मित्र, दुर्वार एवा राजा उग्रशासनना भयथी एकवार तुं मने बलात्कारे बचावी ले." मंत्रीए आ प्रमाणे कह्युं, तो पण ते नित्यमित्रे तेनुं वचन सांभल्युं नहीं. तेम नेत्रोथी तेनी सामुं जोयुं नहिं. ते पडखे हतो तो पण तेने ओळखतो न होय तेम रह्यो पछी सर्व सरळ अने विद्वान् लोकोए तेने मांड मांड समजाव्यो, एटले ते नित्यमित्रे मंद थई गयेला मंत्रीने आ प्रमाणे कह्युं, "आपणा बनेनो संग केवी श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
151
"