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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा योग्य नथी. तुं तेनी उपर जेवो रागी छे, तेवो ते तारी उपर रागी नथी. आ अंदर तद्दन अशुद्ध छे अने बहार शुद्ध देखाय छे, ते तेनो सत्कार करेलो छे, पण तेनो कदि पण विश्वास करीश नहीं. जो तुं तेने भोजन आपीश नहीं अने तेने स्नान करावीश नहीं, तो ते तारो निर्मळ कार्यभार करशे नहीं. ।।१०।। हे विद्वान् आ तारो मित्र विधुर छे. माटे तुं तेने छोडी कोई बीजा उत्तम मित्रने कर के, जे मित्र तने कष्टमां सहाय करे." आ प्रमाणे ते हितकारी विश्वहित पुरुषनां नहीं छेतरे तेवां बधां वचनो सांभळी तेने कांईक भान आव्युं अने तत्काल तेणे विचायु के, "आ विश्वहिते जे कांई का, ते सारं जणाय छे. तेथी हवे हुं कृतज्ञ नामनो कोई योग्य मित्र करूं." आq चिंतवी तेणे कृतज्ञ नामनो मित्र को. ते मित्रने थोडी भक्ति बतावी मंत्री दरेक पर्वने दिवसे आवी अन्न तथा तांबूल वगेरेथी संतोष आपवा लाग्यो, ते जोई बधा लोक तेने पर्वमित्रना नामथी ओलखवा लाग्या. कारण के लोकोनो एवो स्वभाव छे के जेवू नजरे देखे तेवू कहे. आ प्रमाणे शुद्धबुद्धि नित्यमित्र तथा पर्वमित्रनी साथे रहेलो हतो, तेने जोई लक्ष्मीना स्थानरूप अने यथार्थ नामवाळो विश्वहित तेनी प्रत्ये बोल्यो, "हे मंत्री, आ तमारो जे पर्वमित्र छे, तमारा दुःखनो जरा भागीदार बने छे, परंतु तेवा मित्रने हुं तमारो सारी रीते हितकारी कही शकतो नथी. जे मित्र सर्व दुःखनो हरनारो, शिव सुखनो करनारो अने नमस्कार, स्तुति अने संगतिथी संतुष्ट रहेनारो होय, तेवो मित्र उत्तम बुद्धिवाळो अने हितकारी छे, एम मानु छं." विश्वहितनां आवां वचन सांभळी मंत्री शुद्धबुद्धि आ प्रमाणे बोल्यो, "त्यारे एवो विश्वहित मित्र आ संसारमा क्यां मळी शकशे?" विश्वहित बोल्यो, "तेवो एक लोकनाथ नामनो मित्र कोई सारा स्थानमा रहेलो छे, तेनुं जरा स्वरूप कहुं ते सांभळो अने तमारा संशयोने दूर करो. जेनुं मुख सम्यग्ज्ञानथी उज्ज्वळ छे, जेनी दृष्टि सौम्य छे, जेनुं हृदय सरल छे, जे सदाचरणथी युक्त छे, जे नीच काम करवामां विरक्त छे, जे सदा विश्वजनना आधाररूप छे अने जे अंग तथा उपांगमां प्रतिष्ठित छे, तेवो कोई सारा हृदयवाळो मित्र तमारे करवो." । विश्वहितनां आवां वचन सांभळी शुद्ध बुद्धि मंत्री बोल्यो, "एवा कोई पुरुषने हुं कोईवार जिनालयमां जोउं छु, कोईवार उपाश्रयमां जोउं छु अने कोईवार सत्पुरुषोना घरमां जोउं छु. परंतु तेवा उत्तम पुरुषने जोई हुं नाशी जाउं छु. हवे तमारा कहेवाथी हुं तेवा पुरुषने मळीश." पछी ते कोईवार पोताना स्थानमां, श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 150
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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