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________________ पूर्णकळशनी कथा, विष्णुशर्मा ब्राह्मणनी कथा 'विष्णुपदनो आश्रय करनार, सच्चक्रनो बंधुरूप अने शूर एवो मित्र जो वसु रहित होय, तो तेने मार्गे चालनारो माणस पण मान आपतो नथीं तो पछी बीजो कोण मान आपे? -कोशाढ्य एवो पुरुष बद्धमुष्टि होय, तो पण ते पृथ्वीनो स्वामी थाय छे. हथीआरो घणां होय, पण पृथ्वी तो खड्गनी ज छे. आगळ तो आपणे बंनेने गमे ते (साधन) वडे संतोष हतो; परंतु हवे तो विधियोगे सदा मनने पीडा आपनारी कन्याओ थई पडी छे. हे स्वामी! हवे विचार करो आटली बधी आ कन्याओना विवाह, आभरण अने पोषण द्रव्य वगर शी रीते थई शकशे?" प्रिया शीलवतीना आ वचन सांभळी ते शुद्ध बुद्धिवाळा विष्णुशर्माए मनमां विचार्यु के, "आ प्रिया जे कहे छे, ते सर्व सत्य छे; कारण के आ पृथ्वीमां मातंग थकी पण दारिद्र (अधिक) लेखाय छे. ए निश्चय छे अने तेनाथी मलिनता अधिक थाय छे, जेथी स्वजन पण तेनो स्पर्श करतो नथी; तेथी हुँ विविध उद्यम करी अने देशांतर जई घणुं धन लई आईं अने मनोरथ पूरा करूं." आq मनमां घणीवार चिंतवी ते एक दिशा तरफ चाल्यो अने ते पोतानी निर्दोष विद्या वडे उत्तम जनोने संतोष आपवा लाग्यो. तेणे राजाओने राजी करवा मांड्या, पण कोई ठेकाणेथी द्रव्य प्राप्त थयु नहि. पछी तेणे कोई एक वृद्ध ब्राह्मणने पूछ्युं के, "अरे भाई, द्रव्य क्यां छ?" ते वृद्ध ब्राह्मण बोल्यो, रत्नोनी खाणरूप एवा रत्नद्वीपमां रत्नवती देवी छे. तेणीनी सेवा करवाथी ते यत्न करनारा सत्पुरुषोने रत्न आपे छे." वृद्धना आ वचन उपरथी ज्यां ते रत्नोनी खाणनी देवी हती, त्यां ते गयो अने तेणे तेनी विधिपूर्वक आदरथी आराधना करवा मांडी. शरीर उपर उत्तरासंग वस्त्र राखी सारा पवित्र वस्त्रो पहेरी सुंदर चंदनना लेपथी अने पूर्ण खीलेलां सारां पुष्पो तथा उत्तम कमळोथी तेनी पूजा करी अने नमस्कार करी ते अंजलि जोडी आ प्रमाणे बोल्यो1. अहिं मित्रनो अर्थ सूर्य अने स्नेही थाय छे. मित्र विष्णुपद-आकाशनो आश्रय करनार छे. सच्चक्र-सारा चक्रवाक पक्षीओनो बंधुरूप छे अने तेनुं नाम सूर छे. ते वसु-किरणोथी . रहित होय, तो मार्गे चालनारो मुसाफर पण तेने गणतो नथी. मित्र-स्नेही विष्णुपदनो आश्रित एटले वैष्णव होय, सच्चक्र-सारा पुरुषोना चक्र-समृहनो बंधुरूप होय अने शूरवीर होय, पण जो ते वसु-धनथी रहित होय तो तेने कोई मान आपतुं नथी. 2. कोशाढ्यएटले धनवान् एवा पुरुष बद्धमुष्टि-एटले बांधी मुठी राखनार-लोभी होय तो पण ते पृथ्वीनो धणी थाय छे. पक्षे कोशाढ्य-म्यानवाळो अने बद्धमुष्टि-मूठवाळो खड्ग जेना हाथमां छे, एवो पुरुष पृीनो स्वामी थाय छे. 3. मातंग एटले लक्ष्मीनी ताण-न्युनता. पक्षे मातंग एटले चंडाळ करतां पण दारिद्रय वधारे खराब छे केमके निर्धनने स्वजनो पण स्पर्शता नथी स्वजनो तेनाथी अळगा रहे छे. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 134
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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