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पूर्णकळशनी कथा, विष्णुशर्मा ब्राह्मणनी कथा उद्यानपालने अपरिमित योग्य दान आपी वाहन उपर बेसी असह्य (भारे) सेनाने साथे लई ते गुरुने वंदन करवा चाली नीकल्यो. ते सूरीश्वरने विधिपूर्वक वंदना करी राजा पोताने योग्य एवा स्थाने सावधान थई बेठो एटले गुरुए आ प्रमाणे देशना आपवा मांडी.
"हे राजन्, आ भरतक्षेत्रमा बधा मळीने बत्रीस हजार देशो छे, तेओमां साडी पचीस आर्य देश छे. अंग, बंग (बंगाळ), कलिंग, कोशळ, जांगळ, कुरु, पंचाळ (पंजाब), मगध, सिंधु, काशी, भंग कुणालक, दशार्ण, लाट, शांडिल्य, वत्स, अच्छ, वयराटक, सुराष्ट्रे (सोरठ), मलय, चेदी, सूरसेन, विदेह, वत, कुशात अने अर्थो केकेयी-एम साडी पचीस आर्यदेश विद्वानोए जाणी लेवा. ते साडी पचीस देशोमां ज त्रिषष्ठिशलाका पुरुषो जन्मे छे. तेवा देशोमां रत्न जेवू दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करीने जेओ प्रमाद करे छे, तेओ एक विष्णुशर्मा ब्राह्मणनी जेम दुःखी थाय छे.
विष्णुशर्मा ब्राह्मणनी कथा प्रतिष्ठानपुरमा विष्णुशर्मा नामे एक ब्राह्मण हतो. तेने शीलनुं लालनपालन करवानी इच्छावाळी शीलवती नामे पत्नी हती. ते विष्णुशर्मा चौद विद्या जाणनार हतो, तो पण ते लक्ष्मीथी रहित हतो, "प्रायो यत्र भवेद्विद्या लक्ष्मीस्तत्र न दृश्यते ।।९१२।।" प्राये करीने ज्यां विद्या होय, त्यां लक्ष्मी होती नथी. तेने . माटे कयुं छे के, "लक्ष्मी जल जंतुओना भंडार रूप एवा समुद्रनुं एक मत्स्य छ, एम कहेवामां कोई जातनो विवाद ज नथी, कारण के जेम मत्स्य धीवर ढीमरोथी डरे छे अने जड-जलमां डूबी जाय छे तेम लक्ष्मी पण धीवर-विद्वानोथी डरे छे अने जड पुरुषोमां डूबी जाय छे-मग्न रहे छे. वळी कर्वा छे के, "हे राजन्! जेम मृगली गुणी-पाश धरनारा माणसने देखी पोताने बंधन थवानी शंकाथी दूर दूर नाशी जाय छे, तेम लक्ष्मी गुणी माणसने देखी पोताने बंधन थवानी शंकाथी दूर दूर नाशी जाय छे. ब्राह्मण विष्णुशर्मा अने शीलवती ते बंनेने दारिद्र्य तो एक हतुं ज, पण तेमां वळी तेमने घणी दीकरीओ थई ते दांझेला पर फोल्लो थवाना जेवू बन्यु हतुं.
एक वखते घणी कन्याओथी अने द्रव्यना अभावथी दुःखी थयेली प्रिया शीलवतीए मधुर वचनोथी पोताना पतिने आ प्रमाणे कडं, "गृहस्थ धनवान् अने मुनि निर्धन होय तो ए बंने पूजवा लायक छे, पण जो तेथी उलटुं होय एटले गृहस्थ निर्धन अने मुनि धनवान् होय, तो बनेनी मान्यता लोकोमां थती नथी. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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