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________________ धर्मतत्त्वना स्वरूप उपर पूर्णकळशनी कथा पुत्री अने विद्या सदा शुभदायक थाय छे." आ प्रमाणे कही राजाए सर्व जननी साक्षीए पोशाक, हस्ती, घोडा अने रत्न सहित पोतानी पुत्री कुमार पूर्णकलशने आपी. ते खबर जाणी सारा मुखवाळा सेनापति वगेरेए पण पोतपोतानी पुत्रीओ सुवर्ण तथा वस्त्र सहित ते कुमारने तरत अर्पण करीः राजाए सर्व वस्तुओथी पूर्ण करी सातमाळनो एक उत्तम महेल तेने वास करवा माटे सन्मान पूर्वक अर्पण कर्यो. चार प्रकारनी बुद्धिनो निधिरूप कुमार पूर्णकलश दुःख रहित अने स्वस्थ मनवाळो थई ते चारे प्रियाओनी साथे त्यां रहेवा लाग्यो. एक वखते राजा सूरसेने आकाशमां वादळ जोयु. ते कोई ठेकाणे सिंदूरना रंग जेवं, कोई ठेकाणे नीलमणि जेवं, कोई ठेकाणे सोनेरी रंगनुं, कोई ठेकाणे शुक्लपक्षीना पीछा जेवं, कोई ठेकाणे स्फटिकना जेवं अने कोई ठेकाणे गर्जना साथे विधुत्नी कांतिवाळु जोवामां आव्यु. ते जोई विस्मयथी नेत्रनो विकास करतो जेवामां ते जुवे छे, तेवामां तो प्रचंड पवन वडे आकडाना रूनी जेम ते वीखराई गयेलुं मालुम पड्यु सत्काल राजा सूरसेने विचार्यु के, "जेवी रीते आ मेघमंडळ नाशवंत छे, तेवी रीते द्रव्य, शरीर अने स्त्री वगैरे बधुं नाशवंत छे. मारी नगरी हरिश्चंद्रनी नगरीनी जेम चाली जवानी छे. मारा स्वजनो नाटकमां लाववामां आवेला अनेक रूपी पात्रोना जेवा छे. मारुं कटक-सैन्य कांटावाला स्थानना जेतुं छे. मारुं मंदिर यमराजना मंदिरना जेवू भयंकर छे. आं 'क्षिति क्षतिना जेवी छे. आ कमळा-लक्ष्मी कमळमां उत्पन्न थयेली छे अने कमळने आश्रित छे, ते कमळमां पण जे स्थिर रहेती नथी, तो पछी बीजी कोने अलंकृत करीने स्थिर रहे? कामना आरामवडे सुंदर एवी ते स्त्री तो कामने ज अनुसरनारी छे, नहीं तो ते काम-इच्छाओमां ज आराम करनारी थाय छे. तेथी स्त्रीनी पकड मुश्केलीथी छोडी शकाय तेवी छे. संपत्तिओनो अने स्त्रीओनो त्याग करवो सारो छे अने आ पृथ्वी उपर जे भोग छे ते भोगना जेवा ज छे, तेनाथी स्पर्श थयेलो पुरुष पोते शिष्ट होय तो पण ते कष्टने ज पामे छे, ।।९००।। जेओ आ लोकमां युद्ध करीने शत्रुओनो निग्रह करे छे, तेओए बीजाओनो सार मेळव्यो पण तेमना प्रधान पुरुष (पुरुषार्थ-धर्म) नो क्षय थाय छे. तेथी जो मने हमणां ज धर्मने करनारी गुरुनी प्राप्ति थई आवे, तो हुं आ राज्यनो भार छोडी दई सम्यक् प्रकारे संयमनो आश्रय करूं." आ प्रमाणे राजा सूरसेन विचार करतो हतो, तेवामां उद्यानपाले आवी प्रसनचंद्र सूरीश्वरना आववाना खबर आप्या. तरत ज राजा ते 1. क्षिति-पृथ्वी. 2. क्षति-क्षय. 3. भोग-सर्पनी फणा. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 132
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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