SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मतत्त्वना स्वरूप उपर पूर्णकळशनी कथा ते 'जनार्दन न हतो. ते राजा पोताना राजधर्मथी जिनधर्मने सदा उत्तम मानतो. तेथी ते जिनधर्मनुं कार्य कर्या पछी राजधर्मनुं कार्य करतो हतो. एवी रीते गृहस्थ धर्मरूपी वृक्षतुं सरस फल ग्रहण करता एवा ते राजाने राज्यना सर्व अंगोनी पुष्टि थई अने पछी तेना 2अंगज्जननो उदय थयो. कामसेना राणीथी वीरसेन नामे सद्बुद्धि पुत्र उत्पन्न थयो. ते अनेक लोकोए नमेलो अने विवेकी पुरुषोने माननीय थयो. एक वखते कुमार पूर्ण कलशे पोताना मित्र मित्रसेनने कह्यु के, "हमणां मारा हृदयमां आ पृथ्वीनुं कौतुक जोवानो विचार थयो छे." तेणे मित्ररूपे राजाने जणाव्यु. "हे विभो, भले जेवी तमारी इच्छा, परंतु पेला यक्षना सान्निध्यथी आपणे जईए." तेना वचन उपरथी राजाए ते यक्ष- स्मरण कयु, एटले ते मननी साथे ज क्षणवारमा आवीने उभो रह्यो. देवता विलंब करता नथी. राजाए तेनी आगळ पोतानी खरी हकीकत कही, एटले यक्षे कह्यु के, "तमो बंने सत्वर गजेंद्र उपर चडी जाओ, पछी ते कुमार पूर्णकलश अने साधक बंने यक्षना सानिध्यथी साधुओमां उत्तम बनी यक्षना गजेंद्र उपर चडी आकाश मार्गे चाल्या. विविध कौतुकथी भरपुर एवी पृथ्वीने विलोकतां ते बंने कांचनना समूहथी विराजमान एवा कांचनपुरमां आवी पहोंच्या. ।।८००।। जे कांचनपुर उत्तम एवा आश्चर्याने धारण करतुं हतुं; सुवर्णना किल्लाथी सुशोभित हतुं, प्रासादोना समूहथी व्याप्त हतुं, हवेलीओनी श्रेणी वडे युक्त हतुं. दुकानोनी पंक्तिमा रहेली सारी वस्तुओथी भरपुर हतुं, नाटक तथा रमतगमतोथी युक्त हतुं, घणां धनिक लोकोना आवासो त्यां आवेला हता अने ते धनधान्यथी पूर्ण हतुं. ते नगर व्याकरणना जेवू बराबर देखातुं हतुं. जेम व्याकरण चतुष्कवडे युक्त होय छे, तेम ते चतुष्क-चार स्तंभवाळा मंडपोथी युक्त हतुं, जेम व्याकरण 'उत्सर्ग तथा अपवाद विधिवडे उन्नत होय छे, तेम ते नगर उत्सर्ग-त्याग करवाना अपवादनी विधिथी उन्नत हतुं. जेम व्याकरण आख्यात कृत्य अने तद्धितना प्रत्ययो अने वर्णो-अक्षरोथी युक्त होय छे, तेम ते नगर विख्यात एवा कृत्य-कार्योने करनारा अने तद्धित-तेना हितनी प्रतीति-खात्री आपनारा एवा वर्ण-चारे वर्णना लोकोथी युक्त हतुं. व्याकरण 1. जे जनार्दन-विष्णु होय ते लक्ष्मीए युक्त होय ज, आ पूर्णकलश लक्ष्मीए युक्त हतो, जिनधर्मनो पालक हतो अने जनार्दन-जन-लोकोने-अर्दन-पीडा करनार न हतो ए आश्चर्य, 2. अंगज्जन-राज्यना अंगोना माणसोनो उदय पक्षे अंगज-पुत्र जननो उदय. 3. व्याकरणमां चतुष्क प्रत्यय दर्शक छे. 4. व्याकरणमा उत्सर्ग अने अपवाद विधि आवे छे. 5. आख्यात-धातु प्रक्रिया, कृत्य-कृदंत प्रक्रिया अने तद्धित प्रक्रिया आवे छे. 126 श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy