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धर्मतत्त्वना स्वरूप उपर पूर्णकळशनी कथा
विराधना करी हती. ते सम्यक्त्वनी शुद्धि विना बीजो धर्म मान्य थतो नथी. ते दोषने लईने हुं आ यक्ष थयो छं, तेथी हे विज्ञे! हंमेशां शुद्ध सम्यक्त्व धारण करवुं अने तेमां शंका वगेरे मोटा दोषो करवा नहीं. में आटलो वखत राज्यने सहाय आपवा रूप हित करेलुं छे. छेवट प्रतिष्ठानपुरना स्वामीपणाथी सुशोभित श्री मलयकेतु राजानो आ कुमार राज्यनी रक्षा करवा माटे कामसेनाना विवाह अर्थे (तमने) अर्पण कर्यो छे. आ पूर्णकलश नामना कुमारनो राज्याभिषेक करी तमे आदरथी तेनी आज्ञा मानजो." यक्षनां आ वचनो सर्वेए अंगीकार कर्यां, पछी यक्षे कंदर्पना जेवा देहवाळा ते कुमारने अति हर्षथी कह्युं, "हे पूर्णकलश, सद्वृत्त, पत्र युक्त, घनरसनुं पात्र सुमनस् सहित अने अर्थ आपनार एवो तुं जय पाम. धर्मथी तारा कार्यनी सिद्धि थशे तेमां कोई जातनो संशय राखीश नहि, तो पण कोईवार कर्त्तव्य करवानी इच्छा थाय, तो मने अवसरे संभारजे." आ प्रमाणे कही ते धैर्यवान् यक्ष पोताना स्थानमां चाल्यो गयो. "देवा घनं दानवा वा, तिष्ठन्ति न नरान्तिके" ।। ७८४ ।। देवताओ अने दानवो मनुष्यनी समीपे घणीवार सुधी रहेता नथी. पछी सेनापति अने मंत्री वगेरे ते कुमारनो पट्टाभिषेक कर्यो, नीतिने जाणनार अने शूरवीर एवा पुरुषने कयो मनुष्य राजा न बनावे? पछी कुमारे पेला साधक मित्रसेनने हर्षथी एक देशनो स्वामी बनाव्यो. कारण के "संतोह्याश्रितवत्सलाः” सत्पुरुषो पोताना आश्रितजन उपर वात्सल्य धरनारा होय छे. ज्ञानगर्भ मंत्रीए ते जोईने पोतानी पुत्री मित्रसेननी साथे परणावी. "नृपमान्योऽर्च्यते जनैः" राजानो मानीतो थयेलो पुरुष लोकोथी पूजाय छे. राजा पूर्णकलश पुण्यानुबंधी पुण्यथी राज्यने प्राप्त करी हंमेशां सरल हृदये पवित्र पुण्य आचरवा लाग्यो. ते समय प्रमाणे विरोध न आवे तेवी रीते सदा धर्म, अर्थ अने कामने साधतो, तेमां आश्चर्य नथी, कारण के राजधर्म एवो ज छे. ते अपूर्वउत्कृष्ट (व्यक्ति) मां उत्कृष्ट, मध्यममां मध्यम अने जघन्यमां जघन्य आदर राखतो हतो कारण के ते क्रमवेत्ता हतो. ते लक्ष्मीए युक्त हतो छतां पण 2 जिनधर्मने छोडतो नहीं, ते आश्चर्य हतुं. परंतु तेथी पण वधारे आश्चर्य ए हतुं के
1. पूर्णकलश सद्वृत्त - सारो गोळाकार, पत्र युक्त- पल्लवोथी युक्त, घनरस- जळनुं पात्र अने सुमनस् पुष्पोथी युक्त होय छे अने ते अर्थ- द्रव्यने आपनार छे. कुमार पूर्णकलश सद्वृत्तसारा आचरणवाळो, पत्र- वाहने युक्त धनरस - ज्ञाननुं पात्र अने सुमनस् - विद्वानोनी साथे साथे रहेनार अने अर्थ साधक हतो. 2. जन- वीतरागनो धर्म पाळवामां लक्ष्मी (नी गरज ) न होवी जोईए छतां ते लक्ष्मी युक्त थई जिनधर्मने पाळतो.
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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