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धर्मतत्त्वना स्वरूप उपर पूर्णकळशनी कथा
"ज्यारे तमे पूर्वे विवाहमां मारी साथे करस्पर्श करेलो त्यारे में जाणी लीधुं हतुं के तमे पुरुष छो." ते सांभळी कुमारे चिंतव्युं के, "आ बाळा छे, छतां घणी विदुषी छे." पछी कामसेना बोली, "तमे मने स्त्री तरीके शी रीते जाणी?"" कुमारे कह्युं, "ते तारो सर्व वृत्तांत मने यक्षे कह्यो हतो. " पछी ते बंने पोतपोतानो वेष हर्षथी अंगीकार कर्यो अने बने परस्पर रूप जोईने जन्मनी सफळता मानवा लाग्या. तेमणे विविध जातना सुखोथी ते रात्रि आनंदमय करी. प्रभातकाळे कामसेनाए कुमारने आ प्रमाणे कह्युं, "स्वामी, फरीवार तमारुं उत्तम स्त्रीरूप बनावी द्यो. हुं मारी मातानी पासे जई आ सर्व वृत्तांत तेणीने जणावुं." पछी कुमारे तेम कयुं. एटले कामसेना पोतें स्त्रीवेष साथै पोतानी माता पासे आवी. तेणीने स्त्रीवेषवाळी जोई माता अत्यंत चमत्कार पामी गई. पछी तेणीने एकांते बोलावी पूछ्युं के, "पुत्री आ शुं कर्यु?" पछी कामसेनाए बधी हकीकत पोतानी माताने कही संभळावी. राणी खुशी थई अने तेणीए पोतानी पुत्रीनो ते वृत्तांत मंत्रीने निवेदन कर्यो. पछी राणी, मंत्री अने राजपुत्री त्रणे कुमार पूर्णकलशनी पासे आव्यां. त्यां कुमारने स्त्रीना रूपमां जोई राणीए पुत्रीने कह्युं, "वत्से, पहेलां तें जे कह्युं हतुं, ते तो अत्यारे देखातुं नथी.” पछी राजपुत्रीना कहेवाथी पूर्णकलशकुमारे पोतानुं खरुं रूप प्रगट कर्यं ते जोई राजपत्नी हर्षथी उत्कंठावाळी बनी गई. तेणीए मंत्रीने कयुं, "हे विद्वान्, जुवो, शुं आ आश्चर्यनी वात नथी?” ते सांभळी उत्तम शास्त्रोमां चतुर एवो मंत्री बोल्यो, "हे देवी, तेमां आश्चर्यनी वात शी छे? धर्मथी शुं न थाय ? ।।७६९ ।।
धर्मथी कल्याणने प्राप्त थनारा मनुष्योने पृथ्वी द्रव्यना भंडारवाळी थाय छे, सर्व राज्य स्वराज्यना जेवुं बने छे, देवताओ हंमेशां सेवक थईने रहे छे, दैत्यो मनुष्यना जेवा थई जाय छे, दुष्काळ सुकाळ थई जाय छे. दुर्गम सुगम थई पडे छे, खंड-वन अखंड नगर रूप थाय छे. दुर्जन सज्जन थई जाय छे, विदेश स्वदेशना जेवो बने छे, विषम सुसम बने छे, रोग भोगपणाने पामे छे, दुःख उत्तम सुखरूप बनी जाय छे, कालकूट झेर अमृत थई जाय छे, संकट लक्ष्मीने निकट बनी जाय छे, निधन - मृत्यु अथवा निर्धनता धनिकता रूपे थाय छे, परलोक स्वलोकनी पेठे थई पडे छे, लक्ष्मी हंमेशां लक्ष्मी (शोभा) आपनारी थाय छे. शारदा - सरस्वती - केळवणी शारदा - सारने आपनारी थाय छे अने पोते करेल सुकृत वधी जाय छे." आ. समये पेलो यक्ष ते राणी वगेरेनी आगळ प्रगट थईने बोल्यो, "हुं पूर्वे दमितारि राजा हतो, में शंकादि दोषथी सम्यक्त्वनी जरा श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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