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________________ एक नगर छे, तेनी ओळख आपी ते नगरीमा एक पद्मसेन नामे राजा राज्य करतो हतो. ते राजा एक वखते रात्रिने छल्ले पहोरे विचार करवा लाग्यो के, मनुष्यने गुरु सिवाय मोक्षपदनुं स्थान थतुं नथी, माटे कोई मारे धर्मगुरु होय तो वधारे सालं! प्रातःकाळ थतां कचेरीमा आवतां तेना भाग्ययोगे ते नगरीनी बहार श्री ब्रह्मगुप्त नामना एक सूरिजी शिष्योना परिवार सहित पधारे छे, जेमनी वधामणी वनपालके राजाने आपतां परिवार सहित राजा श्री सूरि महाराजने वंदना करवा ते वनमां आवे छे, ज्यां सूरिमहाराजने विधिपूर्वक राजा वंदना करी, पोताने उच्च अने निर्भय करवा विनंति करे छे. आचार्य महाराजे राजाने उपदेश आपतां जणाव्युं के, कर्मो अने जीवो काळथी अनादि छे. जीव प्रायः करीने वनस्पतिमां रहे छे, त्यांथी चडतां बादर, निगोद, पृथ्वीकाय विकलेन्द्रियमां पछी पंचेन्द्रियमां आवे छे; ते रीते तेनुं तेमज व्यवहारराशी, अव्यवहारराशी तथा नारकी वगेरे जीवोनी कायस्थिति तथा आयुष्य- विवेचन करी, सर्व प्रकारनी आशाने पुरनारो, दश दृष्टांतोथी दुर्लभ एवो चिंतामणि समान मनुष्यभव अने तेनी उपयोगीतानुं वर्णन करवामां आवे छे; ते संक्षिप्तमां होवा छतां जाणवा योग्य छे. मनुष्यभवमां ज धर्मरूपी राजा मळी शके छे. जे धर्म निर्धनने धन अने असहायने सहाय करवामां श्रेष्ठ छे. धर्मथी सारा कुळमां जन्म थाय छे, धर्मथी सर्व प्रकारनी संपत्तिओ मळे छे, धर्मथी प्रभुपणुं, इंद्रपणुं, तीर्थंकरपणुं प्राप्त थाय छे. आ त्रैलोक्यमा जे जे शुभ वस्तु छे, ते सर्व धर्मना प्रसादथी प्राप्त थाय छे. ते धर्म सुबुद्धिमंत्रीने श्रेष्ठ अने सखावती केम सहाय थई पड्यो तेनी अवांतर कथा प्रथम अहीं आपवामां आवी छे, साथे पकड्युं छे ते छोडवू नहिं तेवा कदाग्रहथी कुलपत्रक जेना अंगो भांगे छे ते दृष्टांत आपे छे. आ बन्ने विषयो उपर सुबुद्धि मंत्रीए पोताना राजा जितशत्रुने आपेल उपदेश तथा धर्मना आराधनथी सुबुद्धि छेवटे मोक्ष लक्ष्मीने केम प्राप्त थयो ते आ कथामां आपेल छे. कथा एटली बधी रसिक छे के जेना मननपूर्वक वांचनथी बाळजीवो धर्मनी सन्मुख थाय छे. धर्मरूपी कल्पवृक्षनुं माहात्म्य अने ते दान, शील, तप अने भाव ए चार शाखावाळो छे, जेमां दानधर्म ए मुख्य छे. ते गुणथी बीजा सर्व गुणो प्रकाशमान थाय छे, पण बीजा गुणोथी दानगुण प्रकाशमान थतो नथी; तेमज बीजा गुणोथी मात्र तेनुं आराधन करनार संसार समुद्र तरे छे त्यारे दानगुणथी दाता अने दान ग्रहण करनार बंने संसार समुद्र तरी जाय छे; तेथी सर्वथी दानगुण अधिक छे. वगेरे दानगुणनो महिमा अने दान आपवाथी कीर्ति, महत्ताने आत्मकल्याणनी
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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