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________________ ग्रंथसंक्षेप प्रथम सर्ग दानधर्माधिकार पेज नंबर १ थी ७४ प्रथम श्री ऋषभदेव भगवान, श्री शांतिनाथ महाराज, श्री नेमीश्वर जिनदेव, श्री पार्श्वनाथ प्रभु, श्रीमहावीरस्वामी अने चरित्रनायक श्री विमलनाथ प्रभुने नमस्कार करवारूप मंगलाचरण करी, श्री पुंडरीक अने गौतम गणधरने वंदन करी, सरस्वती देवी अने गुरुनी स्तुति करतां चरित्रारंभ करे छे. ग्रंथनी शरुआत हवे अहिंथी थाय छे. प्रथम ग्रंथ संबंधी विवेचन करी धर्मनो महान प्रभाव जणावे छे. जेमां पण परोपकार धर्म छे ते सर्वथी श्रेष्ठ छे, ते परोपदेश रूप परोपकार धर्म जेनी तुलना कोई पण रीते थई शकती नथी, तेथी ज हितोपदेशने अर्थे ते परोपकारधर्म विषे कांई कहेवानो हेतु ग्रंथकार महाराज अहिं बतावे छे. चरित्रारंभ - आगळ ग्रंथकर्ता महात्मानो परिचय बतावेल छे तेमां जणाव्या मुजब शाणराज नामना गृहस्थे श्री रत्नसिंहसूरि महाराजना उपदेशथी श्री गिरनार पर्वत उपर एक सुंदर जिनालय कराव्यं हतुं, जेमां मूळ नायक तरीके बिराजमान थयेला तेरमा जिनेश्वर श्री विमलनाथ प्रभु हता जेथी ते उत्तम श्रावक वर्यनी विनंतीथी श्री ज्ञानसागरसूरिजी कहे छे के हुं श्री विमलनाथ प्रभुनुं चरित्र कहुं छं. प्रथम तिर्यग्लोकनी अंदर आवेल मेरुपर्वत अने अरिहंतोनुं आगमन जे अढीद्वीप सिवाय बीजे थतुं नथी, ते अढीद्वीपनं तेनी अंदर आवेल कर्मभूमि (१५) अकर्मभूमी (३०) तथा अंतरद्वीपोनुं वर्णन, तथा जंबूद्वीपनुं वर्णन आपवामां आवेल छे. त्यारबाद धातकीखंडनुं वर्णन आपतां तेमां आवेल प्राग्विदेह नामना क्षेत्रमा रहेल तीर्थंकरो अने अन्य मनुष्योनी स्थिति प्रकृतिनुं विवेचन करी, श्रुत केवीए कहेला पूर्वविदेहनी अंदर भरत नामे एक विजय आवेलो छे. तेमां महापुरी नामे iv
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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