SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राप्ति रत्नचूडकुमारने केम थई, ते कथा दानना प्रकारो साथे श्रीमान् ब्रह्मगुप्तसूरि श्री पद्मसेन राजाने कही संभळावे छे; जे वांचवाथी कोईपण प्राणी दानधर्म गुण प्राप्त करवानी ईच्छावाळो थया सिवाय रहेतो नथी. अहिं दानधर्माधिकार नामनो प्रथम सर्ग पूर्ण थाय छे. द्वितीय सर्ग शीलधर्माधिकार पाना नंबर ७५ थी १४२ आ सर्गमां आचार्य महाराज धर्मरूपी कल्पवृक्षनी बीजी शाखा शीलधर्माधिकार विषे उपदेश करे छे, जे मनुष्य शीलनु पालन करे छे तेने विपत्तिओ संपत्तिमां पलटाई जाय छे. शत्रु स्वजन थाय छे, जंगलमा मंगळ बने छे, सुरासुरो ईच्छित आपनार थई जाय छे, हिंसक प्राणीओ वैरभाव भूली जाय छे, एटले के सर्व व्रतोमां उत्तम एवं शीलवत आस्तिक मनुष्योए सदा पाळवा योग्य छे. शील व्रत पालन करवाथी आलोकमां कीर्ति अने परलोकमां स्वर्ग तथा मोक्ष, सती शीलवतीनी जेम प्राप्त करे छे. शीलना माहात्म्य उपर शीलवतीनी कथा अहिं आपवामां आवे छे. जे कथा रसिक, बोध लेवा लायक अने गौरव युक्त छे. तप नामनी धर्म कल्पद्रुमनी त्रीजी शाखानुं व्याख्यान सूरिमहाराज हवे आपे छे. हरीकेशीबळ वगेरे जे लोकोत्तर महर्षिओ हीनकुलमा उत्पन्न थयेला छतां, प्रभुता अने देवताओवडे सेवित थई, आ विश्व उपर विख्यात थई गया, ते तपर्नु ज फळ छे. उत्तम पुरुषोने ताप उत्पन्न करे तेवा महा पापो लागी गयां होय, तेवा पापोनो क्षय तपथी क्षण मात्रमा थई जाय छे. ते तप बार प्रकारे छे. ते तपवडे युद्ध करवाथी सर्व शत्रुओने मनुष्य पूर्ण रीते जीती ले छे तेम तपवडे विग्रह-शरीर खपावतो क्षमाधारी पुरुष चंद्राहास-चंद्रना प्रकाश जेवा तेजने धारण करतो निर्धन छतां अंतर सर्व शत्रुओने पूर्ण रीते जीती ले छे. देहनी अंदर अन्नपाननो प्रवेश अटकावाय नहिं त्यां सुधी ते देहना किल्लामा रहेला कर्मरूपी शत्रुओ पर विजय थई शकतो नथी. तपना आराधनथी आ लोकमां लब्धिओ मळे छे अने परलोकमां शिवसंपत्ति प्राप्त थाय छे. पूर्वे दुष्कृत्यो कां होय तो पण जो प्राणी आदरथी दुष्कर तप आचरे छे तो ते निर्भाग्यनी जेम उंचा प्रकारनां सुखो भोगवे छे. अहिं पद्मसेन राजाए निर्भाग्य कोण हतो, ते पूछवाथी श्रीब्रह्मगुप्तसूरिजी vi
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy