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श्री धर्मतत्त्व उपर अमरसिंहनी कथा न थयु, ते घटतुं नथी. ते जळना योगथी भानुना बंने कर-हाथ कृतार्थ थया, परंतु ते 'राजाना करो अन्य कोईना संतापने हरनारा न थया. तेनुं शुं कारण? पछी ते जळना सिंचनथी तत्काळ नगरमां रोगनी शांति थई गई. ते जोई राजाए विस्मय पामीने पूछ्युं के, "आ राजकुमार कोण छे?" ते समये मंत्रीपुत्र विमळकुमारे अमरसिंहनो कुळ, नाम वगेरे बधो वृत्तांत राजानी आगळ कही संभळाव्यो. ते सांभळी भानु राजाए कुमार अमरसिंहने सन्मानपूर्वक पोतानी कनकावती नामे पुत्री अने अधुं राज्य अर्पण कर्यु.।।६५०।।
केटलोएक काळ सर्व सुखमय गया पछी अमरपुर नगरमांथी आवेला केटलाकएक पुरुषोए कुमार अमरसिंहने खबर आप्या के, "देव, तमो नगरमाथी गया पछी पापर्द्धिना व्यसनथी व्याप्त थयेला एवा राजा समरसिंहे लोकोने शत्रुथी उत्पन्न थयेली पीडानी चिंता-दरकार करी नहि, तेथी शत्रुओना उपद्रवथी लोको दुःखी थया, ते जोई मंत्रीओनी साथे शुभ परिणामनो विचार करी सेनापतिए मृगया करवा गयेला ते राजाने मृगना बहानाथी बाणनो घा करीने मारी नाख्यो छे. व्यसन अनर्थ करनारुंज छे. हे प्रभु, हवे तमे सत्वर आवो, राज्यनो स्वीकार करो, लोकोने पाळो अने दुष्ट लोकोनो निग्रह करो." तेओनां आवां वचन सांभळी कुमार अमरसिंहे राजा भानुनी आगळ ते हकीकत निवेदन करी चतुरंग सेना साथे लई हर्षथी पोताना नगरमां आवी पहोंच्यो. भीमकान्त गुणवाळा अने नीतिमार्गे चालनारा कुमार अमरसिंहनो सेनापति वगैरे मंत्रीओए राज्य उपर अभिषेक कर्यो. दयाना गुणने लईने अमरसिंह वयमां नानो हतो, तो पण तेने राज्य मन्युं अने मोटा समरसिंहने जीवहिंसाने लीधे शरीरनो क्षय थई गयो. राजा अमरसिंहे राज्य मेळवी पोताना देशमां दयाधर्म प्रवर्त्ताव्यो, तेथी तेने राज्य तथा प्रजानी आबादि थई अने तेनो महिमा अद्भुत थयो. पेला देवताना सांनिध्यथी राजा अमरसिंह चिरकाल राज्य लक्ष्मी भोगवी छेवटे पोताना पुत्रने राज्य आपी दीक्षा ग्रहण करी निर्मळ हृदयवाळा ते अमरसिंह मुनि सर्व रीते दया पाळी अंते केवळज्ञान मेळवी अव्यय-अविनाशी एवा मोक्षने प्राप्त थया. ।।६६१।।
जे सद्बुद्धिमान् मनुष्य आ पृथ्वीमां सम्यक् प्रकारे जीवदया पाळे, जे अन्यने पीडा करवा मृषावाद बोले नहि, अदत्तादान (चोरी) करे नहीं, ब्रह्मचर्य 1. राजा जे प्रजा उपर कर नाखे छे, ते जेम जेम वधारे प्रमाणमां होय छे, तेम तेम ते संतापने हरनारा थता नथी, पण संतापमां वधारो करनार थाय छे, ते युक्त छे. 2. दुष्टनो निग्रह करवावडे भीम अने सज्जनो उपर अनुग्रह करवावडे कान्त.
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श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग