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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा पक्षनो चंद्र नवीन कला ग्रहण करे, तेमने 'काकपक्षने धारण करतो ते छतां पण दिवसे दिवसे भव्यकलाने ग्रहण करवा लाग्यो. __ अनुक्रमे ते सौभाग्यना समूहथी प्रकाशमान एवा यौवनवयने प्राप्त थयो, ते यौवनवय पुण्यवान् अथवा कृतार्थ मनुष्योर्नु स्वाभाविक देहभूषण कहेवाय छे. पुत्रने तेवा यौवनवयवाळो जोई कोटी जनोमां चतुर गणातो रत्नाकर शेठ विचार करवा लाग्यो के, "हवे आ पृथ्वी उपर पुत्रने योग्य एवी कोई धन्य कन्या मळवी जोईए. जेणीनुं शील जाग्रत होय, सदाचार वडे अतुल एवं कुल होय, योग्य रूप होय, धर्मकर्ममां तत्परतां होय, वय तथा विद्यानो योग होय, शरीर मान गुणोनुं स्थानरूप होय, लज्जा अने विनयथी नम्रता होय अने विषदोष वगेरेनो त्याग होय, तेवी कन्या जो मळे तो तेणीनी साथे विवाह करवो उत्तम छे. नहीं तो निश्चे मारा पुत्रना बंने भव बगडी जाय तेथी आ पुत्रने माटे मारे नीतिपूर्वक तेवी सद्गुणी कन्या कोई स्थळेथी शोधी काढवी जोईए." रत्नाकर शेठ आ प्रमाणे विचार करतो हतो, तेवामां एक वणिकनो पुत्र त्यां आवी चड्यो. तेणे आ प्रमाणे कडं. 'शेठजी, आपनी आज्ञाथी हुं कृतांगला नामनी नगरीमा गयो हतो त्यां हुं स्थिर हृदये वेपार करतो रह्यो हतो तेवामां ते स्थळे जिनदत्त नामना एक वेपारीनी साथे मारे वेपार करवानो प्रसंग आव्यो, तेथी कोईवार तेणे मने भोजन करवानुं आमंत्रण कयुं हुं तेना घेर गयो. त्यां एक दिव्यरूपवाळी उत्तम कन्या मारा जोवामां आवी. तेणीने जोई में ते शेठने पूछ्युं के, "आ कोनी पुत्री छे अने तेणीनुं शुं नाम छे?" ते शेठ बोल्यो, "आ कन्या मारी पुत्री छे. ते सर्व लक्षणोथी युक्त छे. पींगळ, व्याकरण, साहित्य अने अलंकार वगेरेमां ते घणी प्रवीण छे. क्षेत्रसमासमां कहेलां क्षेत्र, संग्रहिणीनो संग्रह, कर्मोनी प्रकृतिना स्वरूप अने बीजां तेने लगतां शास्त्रोने ए जाणे छे. ते उपरांत निमित्तज्ञान अने लोकोए मानेली लिखनथी मांडीने पक्षीओना शब्दो ओळखवा सुधीनी कलाओ ए जाणे छे. ए कुमारी सरस्वतीनी जेम हाथमां पुस्तक धरनारी सदा कमळहस्ता अने विचार करवामां चतुर हृदयवाळी छे. एनुं नाम शीलवती अने ए अर्थथी पण शीलवती सती छे, परंतु आ पृथ्वी उपर एने योग्य एवो कोई वर मारा जोवामां 1. काकपक्ष-केशनी शोभा-कानशीया पक्षे काक-पक्ष-कागडीना पांखो अर्थात् कृष्णपक्ष अहिं विरोधाभास अलंकार छे. शुक्लपक्ष अने काकपक्षक-कृष्णपक्षनो योग साथे न होय, ए विरोध. 2. सरस्वती हस्तकमळ-हाथमां कमळ राखनारी छे अने आ कुमारी कमळना जेवा कोमळ हाथवाळी छे. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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