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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा रीते प्रसन्न करनारा, आनंदना मल-दोषने छोडनारा, युद्धनो नाश करनारा, संपूर्ण विश्वमां उपमा रहित, प्राणीओना फलने प्राप्त करनारा, मांसभोजननो निषेध करनारा, अपार सुखथी उज्ज्वळ, अखंड संसारने खंडित करनारा, सर्व प्रकारना कल्याण करनारा, कल्याणकारी स्तवनवाला, क्रोधरूपी दावानलने शांत करनारा, पुण्यथी अद्भुत शब्द बोलनारा, सारा मनुष्योने तृप्ति आपनारा, स्व-आत्मानो अनुभव करनारा, जगतना जीवोने नवीन देखाता, सर्व प्रकारना गौरवनो त्याग करनारा, तीर्थोनी उत्पत्तिना स्थानरूप सुर तथा असुरोए स्तवेला, सदा उपद्रवोनो नाश करनारा, सदा हसते मुखे रहेनारा, चंद्र जेवा मुखवाळा, धर्मनी देशना आपवामां सन्मुख रहेनारा, कामदेवनो ध्वंस करनारा, अरुणोदय जेवा रक्त नखवाळा, वाणी बोलवामां दुर्मुख एवा वादीओनो निरोध करनारा, स्याद्वादीओमां प्रमुख, सर्वदा इंद्रियोने जीतनारा, देवताओ जेनी पासे अत्यंत नम्रता करे छे, तथा केशरीसिंह आपनी पासे भो चाटे छे एवा अने सम तथा विषम स्थितिवाळा सुखी दुःखी सहुना मित्ररूप एवा श्री जिनेंद्र भगवानने हुं सुखे सेवं छु." ||५८।। ___आ प्रमाणे श्री जिनेश्वरनी स्तुति करी अने तेवी जरीते यक्षिणी अजितबलानी पण स्तुति करी रत्नाकर शेठ बे हाथ जोडी ते देवीनी आगळ आ प्रमाणे हर्षथी बोल्यो; "हे देवि, जो तमारा प्रसादथी मारे घेर पुत्रनी उत्पत्ति थशे तो हुं मारा मुखथी ते पुत्रनुं सुंदर नाम तमारे नामे पाडीश. तेम वळी हे कृपावती, तमारो एक नवीन प्रासाद करावीश अने तेनी अंदर हमेशां पुष्प वगेरेथी तमारी विविध प्रकारनी पूजा करीश, तमारो प्रासाद करवाथी तमारी गुरुता (माहात्म्य) सर्व स्थळे वधशे. नहीं तो प्रभाववगरना अमारा बनेनी साथे तमारो प्रभाव पण-हीन गणाशे." एम करतां जिन पूजाना प्रभावथी अने ते देवीना अनुभावथी ते रत्नाकर शेठने घेर थोडा ज समयमां शुभदिवसे पुत्रनो जन्म थयो. ते सुखशाळी शेठे पुत्र जन्मनो उत्सव कर्यो अने दान तथा सन्मानपूर्वक पोताना कुलनो आचार • पण कर्यो. ते पछी ज्यारे ते पुत्रने हर्षना स्थानरूप एवो एक मास थयो एटले ते पुत्रने लई तेणे सरळ हृदयथी देवीनुं सुंदर वर्धापन (वधामणुं) कयु. भगवान् जिनेश्वर अने देवीनी पूजा करी तथा स्वजनवर्गने संतोषी शेठे पोताना पुत्रनुं नाम अजितसेन पाड्यु. हर्षना उत्कर्षने धारण करनारा तेणे पोताना द्रव्यनो खर्च करी एक प्रासाद कराव्यो अने तेमां ते शेठ हमेशां विधिथी पूजा करवा लाग्यो. धाव्यमाताओथी पालन करातो अने सर्व जनोथी लालन करातो पुत्र अजितसेन महान् भाग्यवान् थई मातापिताना मनोरथनी साथे वधवा लाग्यो. जेम शुक्ल श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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