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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा करी तेणे अंदर प्रवेश कर्यो. ते समये तेणे बीजा कर्मोनी चिंता छोडी दई प्रासादनी चिंता करवा मांडी. पछी गर्भद्वारा-गभारामां जई पुनः नैषेधिकी करी विधिपूर्वक जिन प्रतिमानी हर्षवडे विशेष पूजा करी. त्यांथी पाछले पगे गर्भगृहना द्वार आगळ आवी, नैषेधिकी करी, साठ हाथ योग्य स्थाने रही अने योगमुद्रा करी श्री अजितबला यक्षिणी सहित श्रीअजितस्वामीनी तेणे नीचे प्रमाणे स्तुति करवा मांडी-1॥५०॥ ___"देवताओना इंद्रोए स्तवेला, जनसमूहे मान्य करेला, दिव्य प्रभावथी युक्त, विद्वानोना वृंदोए नमेला, महोदयवाळा, प्रौढप्रभावथी अद्भुत, नित्य शोभायुक्त, मनुष्योए पूजेला, सर्व दोषोथी रहित अने हितकारी आ श्रीप्रासादमा रहेला सर्वज्ञ श्री अजितस्वामीने हुं स्तवं छु. कल्याणनी लक्ष्मीना सुखने आपनारा, रोगोनो नाश करनारा, सद्ब्रह्म (ब्रह्मचर्य अथवा तत्त्वज्ञान) रूपजलना द्रहरूप, अगणित हर्ष आपनारा, समस्त प्राणीओना मित्ररूप, मोक्षना स्थानने प्राप्त करनारा, अत्यंत मदनो त्याग करनारा, स्वभावथी उज्ज्वळ, समग्र आपत्तिओने हणनारा, शाश्वत पूज्य (अर्हत्) पदने धरनारा, अज्ञानरूप शत्रुने छेदनारा, दुष्ट आठ कर्मोने भेदनारा, सुखनी श्रेणीना सदनरूप, कामदेवने परास्त करनारा, मोहरूपी गजेंद्रने हणवामां सिंहरूप, असाररूप द्रव्यने छोडी देनारा, मरणने अटकावनारा, संतोषने सारी रीते जीवाडनारा, अनेक जनोने प्रसन्न करनारा, समतारूप वृक्षोना वनरूप, त्रण जगतने पवित्र करनारा, असत्ने दूर करनारा अथवा पाप रहित अने संसारीजीवोनुं रक्षण करनारा एवा श्री अजितप्रभुने हुं वंदना करुं छु. अंतरना कामक्रोधादि शत्रुओने जीतनारा, सातनयनी प्ररूपणा करनारा, जीवोने अभय आपनारा, अपारलय ध्यानने प्राप्त करनारा, दयानो प्रकाश करनारा, सद्ज्ञानरूपी भानुनो उदय करनारा, कांतिना समूहथी चळकता, शुद्ध सिद्धांत प्ररूपनारा, पुष्ट एवा दर्प-अहंकारने दूर करनारा, सर्व अतिशयवाळा, प्रसिद्धिना स्थानरूप, विविध व्याधिने टाळनारा, भव्य प्राणीओने आनंद करनारा, आश्रितोना भयने हरनारा, विज्ञानना समुद्ररूप, पापोनी प्रवृत्तिने हरनारा, कल्याणना उदयने धरनारा, पुण्यवंत प्राणीओनी दृष्टिए आवनारा, संसाररूपी समुद्रने तरनारा अने तारनारा, उत्कृष्ट केवली भगवानोमां श्रेष्ठ, त्रण विश्वने प्रगट करनारा, अनेक देवताओए नमेला, पीडाओना समूहने हणनारा, चारे तरफ प्रसरेला अज्ञानरूप अंधकारने हरवामां सूर्यरूप, चंद्रनी कळानी जेम चळकता, कलंकरहित, उत्तम केवळज्ञानने प्राप्त करनारा, श्रेष्ठ अनंत बलने धरनारा, अजित बळनो आश्रय करनारा, इंद्रोने सारी श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 79
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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