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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा मारो वास छे, गुणोमां मारो अभ्यास छे अने मोटो उद्योग पण छे, परंतु जेम तेज विनानो राजा, घी विनानुं भोजन, नेत्र विनानुं मुख, मंत्री विनानुं राज्य, राजा विना राज्यना सात अंगो, धर्म विना मनुष्य, दान विना धन अने शील विना स्त्री शोभे नहीं, तेम एक पुत्र विना मारु कुळ शोभतुं नथी." प्रभातकाळे ए रात्रिनी चिंताथी श्याम मुखवाळा पोताना स्वामीने जोई प्रिया श्रीदेवीए पूछ्यु. "स्वामी, शुं तमारो कोई सुवर्णनो भंडार अंगारामय थई गयो छे? शुं तमारा हाथमाथी अमूल्य अथवा घणां मूल्यवाळु रत्न पडी गयुं छे? | चोपडामां कोई- नामुं लखतां भूली गया छो? शुं तमारा हृदयमां कोई कन्या वसी छे? अथवा कोई जातना व्यवसायमां पड्या छो? के जेने लईने स्वजातिमां विख्यात एवा तमे चिंतातुर बनी गयेला लागो छो." प्रियानां आ वचनो सांभळी रत्नाकर शेठ बोल्यो, "भद्रे, मने चिंता थवानुं बीजुं कांई पण कारण नथी, परंतु मने हाल सत्पुत्रना विषयनी चिंता थई आवी छे." ते सांभळी श्रीदेवी बोली, "स्वामिन्, ए चिंता तो आपणे बंनेने सरखी छे. तो तमे पत्रनी प्राप्तिने माटे कोई बीजी कन्या परणो." ते सांभळतां ज काने हाथ दईने शेठे कां, "हे पापरहित प्रिया, आ तें शुं कडं? मारे पुत्र थाओ के न थाओ, पण हुं एवं कदि पण करवानो नथी." पछी पतिनी चिंता दूर करवा माटे श्रीदेवी गद्गद् स्वरे बोली, "हे नाथ, तमे अजितस्वामीनी सेविकारूप अजितबला नामनी यक्षिणीनी आराधना करो. ते यक्षिणी संतुष्ट थई आपणने सुखदायक अने कुळनायक एवो अद्भुत पुत्र आपशे. कारण के ते यक्षिणी अपुत्रोने पुत्र आपनारी, दुःखी जनोने सुख आपनारी, आंधळाने आंख आपनारी अने निर्धनने धन आपनारी छे." श्रीदेवीना आ वचन सांभळी रत्नाकर शेठे पूर्व दिशानी सन्मुख रही दातण कयु, पश्चिम दिशा तरफ रहीने स्नान कयुं अने जळमां रहीने ज पवित्र धोतीया पहेर्या पछी पोताना घरमां जई डाबी तरफना भागमा रहेला अने साडीपांच शाखा प्रमाणे उंचा पूजेला देवमंदिरमां ते पूर्वाभिमुखे बेठो. पछी उत्तर दिशा तरफ घरमा रहेली प्रतिमाओने आदरथी विधिपूर्वक जळवडे तेणे स्नान कराव्युं. ते प्रतिमाओने हृदय, कंठ, उदर अने ललाट वगेरे नव अंगे चंदन तथा पुष्पो वडे तेणे अर्चा करी. ते प्रतिमाना वामभागे धूप, दक्षिणभागे दीप अने अग्रभागे अक्षत वगेरे अर्पण काँ. चित्त, वस्त्र, वाणी, काया, पूजा, भूमि अने स्थितिनी शुद्धि करी भव्य अलंकारो धारण करी ते देवगृह (चैत्य) मां गयो. त्यां चैत्य (प्रवेश) द्वारमा प्रथम नैषेधिकी क्रिया . 78 श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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