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शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा आवतो नथी. तेथी मारा हृदयमां चिंतारूपी चिता हमेशां बळ्या करे छे, तेना संतापथी तप्त थयेलो हुं हृदयमां शांति मेळवी शकतो नथी."
ते जिनदत्तना आवा वचन सांभळी में हृदयमां दया लावी आ प्रमाणे का, 'हे चतुर शेठजी, जो बाहुबंध आभूषण होय, तो पछी हाथना आभूषणनी शी चिंता होय? ते कहो. 'कौमुदीनी जेम सितांशुका एवी आ पुत्री रत्नाकर शेठना पुत्रनुं पाणिग्रहण करी, हर्षित थई तमारा संतापने दूर करशे." "ते रत्नाकर शेठ कोण छे? अने तेनो प्रख्यात पुत्र केवो छे?" आ प्रमाणे जिनदत्तना पूछवाथी में तेनी आगळ बधो वृत्तांत यथार्थ रीते निवेदन कर्यो. अधिष्णयना मध्यभागे रहेली, सद्वितीय अने स्थिर एवी आ कन्या ते रत्नाकरना पुत्रनी साथे मळीने तमोने सिद्धियोग करो. मारा आ वचन सांभळी तत्त्वबुद्धिनी संपत्तिओना भंडाररूप एवो ते जिनदत्त शेठ आदरथी पोताना हृदयमां ते शुभ परिणामनो आ प्रमाणे विचार करवा लाग्यो." ए रत्नाकर शेठनो निवास शहेरमा छे. तेनुं कुळ निर्मळ छे, तेनी पासे द्रव्य घणुं छे, तेनुं हृदय उत्तम विचारो करवामां चतुर छे पोतानी स्त्री तरफ तेनी उदारता छे, तेनामां संतोष, उत्कृष्ट, दया अने परोपकारिपणुं रहे छे अने तेनो व्यवहार शुद्ध छे. वळी तेनो कुमार अजितसेन युवान, सारी इंद्रियोवाळो, अति चतुर, विवेकी, स्वभावे सुशील, मातापितावाळो, श्रीमान्, देहना दूषणोथी रहित, विद्या तथा विनयथी संपन्न, नीतिज्ञ अने बे रीते 'सकळ शास्त्रमा जे वरना उच्च लक्षणो कह्यां छे, ते वडे युक्त, श्रेष्ठ अने ते कामदेवना जेवा रूपवाळो छे, एम सांभळवामां आवे छे. कारण के कयुं छे के, जेने सारं शरीर शील, कुळ, द्रव्य, वय अने विद्या होय अने जे सनाथ होय, तेने कन्या आपवी अने जे मूर्ख, निर्धन, दूर देशमा रहेनार, (लडवैयो), मोक्षनी इच्छावाळो अने कन्या करतां त्रणगणा वधारे वर्षनी वयनो होय, तेवा वरने कन्या आपवी नहिं." आ प्रमाणे हृदयमां चिंतवी जिनदत्त शेठे मने विनयथी कडं, "भद्र, तें 1. कौमुदी-चंद्रकांति. 2. सितांशुका-सित-उज्ज्वळ-अंशु-किरणोवाळी होई मनुष्यना तापने पोतानी शीतळताथी टाळे छे. कन्यापक्षे सित-उज्ज्वळ-अंशुक-वस्त्रने धरनारी अने चिंताना संतापने टाळनारी थशे. 3. रोहिणी नक्षत्र धिण्य-नक्षत्रोना मध्यभागे रहेल छे अने ते स्थिरस्वभावी छे ते सद्वितीय-द्वितीया-बीजने दिवसे आवे तो सिद्धियोग थाय छे. कन्यापक्षे ते धिष्ण्य-गृहना मध्यभागे रहेल छे अने स्थिर एटले ठरेल प्रकृतिवाळी छे, ते अजितसेननी साथे मळे-विवाहित थाय तो ते सद्वितीय-जोडी बनी जिनदत्तशेठना कार्यनी सिद्धिनो योग
उत्पन्न करे. 4. एक रीते सकल-कलासहित अने बीजी रीते सकळ-सर्व प्रकारे परिपूर्ण. 5. सनाथ-माथे धणीवाळो. अहिं मातापितावाळो एम समजवू. 82
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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