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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा द्वितिय सर्ग (शीलधर्माधिकार) आ प्रमाणे श्री धर्मरूपी कल्पवृक्षनी दानशाखा कहेवामां आवी, हवे तेनी शीलशाखा कहेवामां आवे छे ते सांभळो- जे मनुष्यो आश्चर्यपणे शीलनु पालन करे छे, तेमने 'सुंदर सुंदर थाय छे, विपत्तिओ संपत्ति थई जाय छे, शत्रुपक्ष स्वजन थई रहे छे, कानन-जंगल जन-मनुष्योनुं स्थान थाय छे, देवताओ देवपणाने आपनारा थाय छे. असुरो असु-प्राण तथा राज्य आपनारा थाय छे, श्वापद-शिकारी प्राणीओ स्व-पोतानी आपत्तिमां आधाररूप थई पडे छे प्रधनयुद्ध प्रधन-उत्कृष्ट धनने आपनारुं थाय छे, पितृगृह-स्मशान पितृगृह-पिताना घरना जेवू थाय छे, विभावसु-अग्नि विभावसु थाय छे अने रत्नगर्भा-पृथ्वी रत्नगर्भा-रत्नोने आपनारी बने छे. जेम निर्मळ सूर्य एकलो ज सर्व अंधकारना समूहनो नाश करे छे. जेम शूरवीर एकलो रणभूमिमां रहेला शत्रुओना समूहने जीती ले छे अने जेम एकलो सिंह हाथीओना टोळाने पूर्ण रीते हरावी दे छे, तेम निर्मळ शील एकलुं ज सर्व कार्योने करनारुं थाय छे. तेने माटे कां छे के, "तेजनो पति सूर्य अने सुशील मनुष्य-ए बनेनुं तेज समान छे. जे तेजथी बीजा तेजोर्नु अने अंधकारनुं निमीलन थई जाय छे." पहेलां अहिंसा व्रतमा संघ वगेरेना कार्यमां जीवोनी हिंसा करवामां कोई प्रकारे संमति आपी छे. बीजा मृषावाद परित्यागमां जीवरक्षा करवा वगेरेना काममा मृषा बोलवा पण कां छे. त्रीजा अदत्तादानमां राजाओ लई ले छे अने आपे छे तेमां शत्रुओना हृदयमां तेमने माटे महत्त्व रहेतुं छे. पांचमा अपरिग्रहव्रतमां गृहस्थोने परिग्रह राखवामां एकांते निषेध करेलो नथी, तेम दिशागमन तथा भोगोपभोग पण निंदेलो नथी अने दाक्षिण्यता राखवामां अनर्थदंड पण अंगीकार करेलो छे. परंतु चोथा ब्रह्मव्रतमां तो परस्त्रीनो संग विविध शास्त्रोमां सर्व प्रकारे निषिद्ध करेलो छे, एथी सर्व व्रतोमां उत्तम एवं शीलव्रत आस्तिक मनुष्योए सदा पाळवा योग्य छे. पिशुन-चाडीयो 1. सुंदर एटले काम. 2. विभावसु-शीतळ हार अथवा विशेष कांतिरूप द्रव्यने आपनार थाय छे. 3. आच्छादन. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 75
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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