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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा-पुरुषनां बत्रीस लक्षणो लेवामां आवे, तो ते बंनेनी वच्चे ज्यांसुधी वर्ष चाले त्यां सुधी वार्षिकी वढवाड चाले छे. हे राजा, बने सपत्नी (शोक्य) वच्चे जे वढवाड होय छे, ते यावज्जीविकाजीवे त्यां सुधी चाले तेवी होय छे." कजीयाना आ चार प्रकार सांभळी राजा चमत्कार पामी गयो. पछी ते वधूनी बुद्धिथी राजी थयेला तेणे पुण्यसिंह शेठनो तेनी पुत्रवधू साथे वस्त्रालंकारोथी सत्कार करी तेमने घेर मोकल्या. एम वधूए ते घास तथा पाणी सोढीना ज गळा उपर मूकाव्यां. पछी राजाए ते सोढीने बांधीने पोताना देशमाथी बहार काढी मूकी." ।।१०४४।। यमघंटा कहे छे "आ उपरथी समजवानं छे के जेम सोढी वाचाळ हती, तो पण तेणीने ते वणिकवधूए थोडी वाणीथी जीती लीधी, तेम ते मुसाफर तमोने थोडी वाणीथी जीती लेशे एमां कोई जातनो संशय राखशो नहीं." आ प्रमाणे यमघंटाना वचनो सांभळी ते चारे धूर्त वणिको मान सहित पोतपोताना ठेकाणे चालता थया. कुमार रत्नचूडे स्त्रीवेशे गुरुना वाक्यनी जेम ते बधुं हृदयमां धारण करी लीधुं. पछी रत्नचूड त्यांथी उठी रणघंटा साथे तेणीने मंदिर आव्यो अने त्यां रणघंटानी रजा लई ते पोताना स्थानमां आव्यो. त्यां निश्चिंत हृदये तेणे निद्रा लीधी. पछी प्रातःकाळे पेला बधा धर्तजनो आव्या. तेमने रत्नचूडे सामवाक्योथी घणीवार समजाववा मांड्या; तथापि तेओ समज्या नहीं. एटले तेओने लई रत्नचूड राजसभामां आव्यो. रत्नचूडने बत्रीस लक्षणवाळो जोई राजा विस्मय पामी गयो. पुरुषनां बत्रीस लक्षणो जे पुरुष शरीरे त्रण अंगोमां विशाळ, त्रणमां गंभीर छ अंगोमां उंचो, चारमा ढूंको, सातमा रातो अने पांचमां लांबो तथा सूक्ष्म होय, ते पुरुष बत्रीस लक्षणवाळो राजारूप गणाय छे. पुरुषनी छाती, मुख अने ललाट-ए त्रण विशाळ होय ते वखणाय छे. नाभि, सत्त्व अने स्वर-ए त्रण गंभीर होय तो वखाणवा योग्य छे. कंठ, पृष्ट, लिंग अने बे जंघा-ए चार जे पुरुषनां टुंका होय, ते पुरुष हमेशां पुजाय छे. जेमना आंगळीना पर्व (अग्रभाग) केश, नख, दांत अने त्वचाए पांच सूक्ष्म होय ते मनुष्य दीर्घजीवी (लांबी आवरदावाळा) थाय छे. जे पुरुषने बे स्तनोनो तथा बे नेत्रोनो मध्यभाग, बंने भुजा (हाथ), नासिका अने हडपचीए पांच लांबा होय ते पुरुष उत्तम अने धन्य गणाय छे. नासिका ग्रीवा (डोक), नख, काख, हृदय अने मुख-ए छ जेना उन्नत होय, ते मनुष्य सदा उन्नतिवाळो थाय छे. नेत्रोना खूणा जीह्वा, ताळवं, नख, होठ अने पगना तळीया-ए सात श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 70
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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