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ગાથા-૫૧
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યતિલક્ષણ સમુચ્ચય પ્રકરણ
जाओ बालो सुत्थो, तजणगो गहिय मोयगे पत्तो । गुरुणा करुणानिहिणा, दवाविया ते उ दत्तस्स ॥ २६ ॥ अह मुणिपहुणा भणियं, तं गच्छसु दत्त ! संपयं वसहिं । अहयंपि आगमिस्सं, पडिपुन्नं काउ समुयाणं ॥ २७॥ सङ्घगिहमेगमिमिणा, चिराउ मह दंसियं सयं अहुणा। सेसेसु गमी दत्तो, इय चिंतंतो गओ वसहिं ॥ २८॥ . गुरुणोवि अंतपंतं, गहिउं सुचिरेण आगया वसहिं। पन्नगबिलनाएणं, भुंजंति तयं समयविहिणा ॥ २९ ॥ आवस्सयवेलाए, आलोइय सूरिणो समुवविट्ठा । .. सो निसियंतो गुरुणा, आलोइसु संममिय वुत्तो ॥ ३०॥ . स भणइ तुब्भेहिं चिय, सह परिभमिओ म्हि किमिह वियडेमि । आह गुरू सिसुविसयं, सुहुमं नणु धाइपिंडं ति ॥ ३१॥ दत्तो तओ दुरप्पा, अणप्पसंकप्पकप्पणाभिहओ। लिंबुक्कडकडुयगिराइ, मुणिवरं पइ इमं भणइ ॥ ३२॥ राईसरिसवमित्ताणि, परच्छिद्दाणि पिच्छसि। .. अप्पणो बिल्लमित्ताणि, पासंतोवि न पाससि? ॥ ३३॥ इय भणिय गओ एसो, नियवसहिं तयणु तस्स सिक्खत्थं। पुरदेवयाइ सिग्धं विउव्वियं दुद्दिणं गरुयं ॥ ३४॥ फुडफुट्टमाणबंभंडभंडरवविरसजलहरारावं। सो निसुणंतो भयभरखलंतवयणो भणइ सूरिं ॥ ३५ ॥ भयवं ! बीहेमि अहं, आह गुरु एहि मम सयासंमि। स भणइ तिमिरभरेणं, दिसिविदिसिं नेव पिच्छामि ॥ ३६॥ दीवसिहं व जलंति, नियंगुलिं खेललद्धिणा काउं। दंसेऊण य गुरुणा, सो वुत्तो वच्छ ! एहि इओ ॥ ३७॥ तं दटुं स दुटुप्पा, जंपइ दीवोवि अत्थि किमिमस्स?। तो पच्चक्खीहोउं, एवं वुत्तो स देवीए ॥ ३८॥ हा! दुट्ठसेह! निन्नेह! देहगेहाइमुक्कपडिबन्धे। मुणिनाहंमि इमंमिवि, एवं चिंतेसि निलज! ॥ ३९॥ .