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યતિલક્ષણ સમુચ્ચય પ્રકરણ
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ગાથા-૫૧
• एगागीवि अहं पुण, पहीणजंघाबलो अबलदेहो ।
अनलो विहरिउमन्नत्थ तो इहं चेव ठाइस्सं ॥ १३ ॥ इय भणिय मुणी वुत्ता, वच्छा ! सच्छासया सयाकालं । कुलवहुनाएण इमं, मा मुंचिज्जह कयावि तुमे ॥ १४ ॥ तिण्णुच्चिय भवजलही, एयपसाया सुहेण तुब्भेहिं । संपइ इमिणा सद्धिं, कुणह विहारं महाभागा ! ॥ १५ ॥ इह सुणिय सुमुणिवइणो, ते मुणिणो सूरिचरणठवियसिरा । मुंचंता गुरुविरहुत्थसोयउप्पन्नअंसुभरं ॥ १६॥ पडिपुनमन्नुभररुद्धकंठउटुिंतगग्गरगिरिल्ला । गुरुवयणं पडिकूलिउमंचयंता दुक्खसंतत्ता ॥ १७॥ कहमवि नमिउं गुरुणो, अवराहपए खमाविउं नियए ।
ओमाइदोसरहिए देसे पत्ता विहारेण ॥ १८ ॥ संगमगुरूवि खिसं, नवभागीकाउ कायनिरविक्खो । वीसुं वसहीगोयरवियांरभूमाइसु जएइ ॥ १९॥ सुद्धिकए गुरुपासे, कयावि सीहेण पेसिओ दत्तो ।
सो पुव्ववसहिसंठियसूरि दटुं विचिंतेइ ॥ २०॥ . कारणवसा न कीरइ, खित्ते अवरावरे जइ विहारो । . नवनववसहिविहारो, कीस एएहिं परिचत्तो? ॥ २१॥
ता एस सिढिलचरणो, खणंपि न खमो इमेण संवासो । ' एवं चिंतिय वीसुं, समीववसहीइ सो ठाइ ॥ २२ ॥ भिक्खासमए गुरुणा, सह हिंडन्तो विसिट्ठमाहारं । दुब्भिक्खवसा अलहंतओ य, जाओ तत्थ कसिणवयणो ॥ २३ ॥ तं तह निएवि सूरी, कम्मिवि ईसरगिहे गओ तत्थ । रेवइदोसेणेगो, सया रुयंतो सिसू अत्थि ॥ २४॥ सो दाउं चप्पुडियं, गुरुणा भणिओ य बाल ! मा रुयसु । गुरुतेयं असहन्ती, झडत्ति सा रेवई नट्ठा ॥ २५ ॥