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________________ दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव वाउसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणइ, तं से अहियाए, तं से अबोहिए; से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इच्चत्थं गढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं 'वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ ॥ ५८॥ पूर्ववत् व्याख्येयं नवरं वायुकायाभिलापेनेति ॥ ५८ ॥ अन्वयार्थः- पूर्ववत्, सूत्र नं. २3 ना समान अर्थ सम४यो... - ભાવાર્થ :- સૂત્ર નં. ૨૩ માં અપકાયનું વર્ણન છે અને આ સૂત્રમાં વાયુકાયનું qfन, 51 802४ ३२४, 480 अर्थ समान छ. ॥ ५८ ।। - भावार्थ :- इस सूत्र का भावार्थ सूत्र नं. २३ के समान ही है । उस सूत्र में अप्काय का वर्णन किया गया है और इस सूत्र में वायुकाय का वर्णन है । सिर्फ इतना ही फर्क है। बाकी सारा अर्थ समान है ॥ ५८॥ . . . कथं पुनर्वायुसमारम्भप्रवृत्ता नानाविधान् प्राणिनो विहिंसन्तीति दर्शयितुमाह- . से बेमि - संति संपाइमा पाणा आहच्च संपयंति य फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावजंति, जे तत्थ संघायमावजंति ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति ते तत्थ उद्दायंति, एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिणाया भवंति, तं परिण्णाय मेहावी व सयं वाउसत्थं | श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000( ४७
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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