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________________ પ્રભુ મહાવીરસ્વામીએ પૂર્વોકત પ્રકારે આચરણ કરેલ હતું. એટલે જ બીજા મોક્ષાર્થી પુરૂષોને પણ આ પ્રકારે આચરણ કરવું જોઈએ એમ સુધર્માસ્વામી સ્વયંના शिष्य स्वामीने ४ छ ॥ २३ ॥ भावार्थः- जो पुरुष स्वयं हिंसा नहीं करता तथा दूसरों से भी नहीं करवाता है तथा जो स्त्रियों के स्वरूप को और उनमें आसक्ति के कारण होने वाले परिणाम को जानता है अर्थात् स्त्रियों को समस्त पापों का कारण समझता है वही परमार्थदर्शी है और संसार के स्वरूप का यथार्थ ज्ञाता है । भगवान् ने स्त्री के स्वभाव को जान कर उसका त्याग कर दिया था । इसलिए वे परमार्थदर्शी थे ॥१७॥ भगवान् ने आधाकर्म आहार का कभी सेवन नहीं किया था क्योंकि आधाकर्म आहारादि के सेवन से आठ प्रकार के कर्मों का बन्ध होना भगवान् ने देखा था । इसी तरह जिन जिन कार्यों से पाप होना भगवान ने देखा था उन सब को छोड़ कर वे प्रासुक आहार का सेवन करते थे ।।१८॥ भगवान् महावीर स्वामी बहुमूल्य वस्त्रों को या दूसरे के वस्त्रों को धारण नहीं करते थे तथा वे दूसरे के पात्र में भी भोजन नहीं करते थे। वे अपमान का ख्याल न करके अदीन वृत्ति से आहार के स्थान में जाते थे ॥१९॥ भगवान् आहार पानी की मात्रा को जानते थे अतः वे मात्रा के अनुसार ही आहार पानी का ग्रहण करते थे । वे रसों में आसक्त नहीं थे। “आज मैं सिंह केशरीया मोदक आदि मिष्टान ही लूँगा" ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करते थे किन्तु नीरस कुल्माष-कुलथी आदि के लिए तो अभिग्रह करते ही थे । भगवान् ने न तो कभी नेत्र की धूलि को निकालने के लिए नेत्र को परिमार्जित किया और न काष्ठ आदि के द्वारा अपने अंगों में खाज ही की थी ॥२०॥ मार्ग में चलते समय भगवान् इधर उधर तिर्छ या पीछे की ओर नहीं देखते थे किन्तु सामने मार्ग को देखते हुए यतनापूर्वक विहार करते थे और किसी के पूछने पर वे कुछ भी बोलते नहीं थे किन्तु मौन रहते थे ॥२१॥ भगवान शिशिर ऋत के आरम्भ में ही उस देवदृष्य वस्त्र को त्याग कर अपनी भुजाओं को फैला कर चलते थे परन्तु शीत से पीड़ित होकर भुजाओं को संकुचित नहीं करते थे तथा कन्धों का अवलम्बन भी नहीं लेते थे ॥२२॥ भगवान् महावीर स्वामी ने पूर्वोक्त प्रकार से आचरण किया था इसलिए दूसरे मोक्षार्थी पुरुषों को भी इसी प्रकार आचरण करना चाहिए ऐसा श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य श्री जम्बूस्वामी से कहते हैं ॥२३॥ (३२२)OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO|श्री आचारांग सूत्र
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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