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________________ જન્મ-મરણથી प्रशंसाने भाटे, मान तथा भ-प्रतिष्ठा भाटे जाइमरणमोयणाए छूटवा भाटे जने दुक्खपड़िघायहेउं - हुः मोनो नाशं ४२वा भाटे से - ते ७व सयमेव स्वयं (पोते) पुढविसत्यं पृथ्वी ३५ शस्त्रनी समारंभइ आरंभ उरे छे वा अने अण्णेहिं - जीभखो द्वारा पुढविसत्थं - पृथ्वी ३५ शस्त्रनो समारंभावेइ खारंभ उरावे छे. वा - जने पुढविसत्थं - पृथ्वी३५ शस्त्रनो समारंभंते अण्णे - आरंभ उरवावाजा जीभ वोना समणुजाणइ अनुमोहन रे छे. - - - ભાવાર્થ :- અજ્ઞાની જીવ જે જે કારણોથી પૃથ્વીકાયનો આરંભ કરે છે, કરાવે छे, डरताने अनुमोहे छे ते अरशो उपरना सूत्रमां जतावेला छे ॥ १६ ॥ के भावार्थ :- अज्ञानी जीव जिन जिन कारणों से पृथ्वीकाय का आरम्भ करते हैं वे कारण ऊपर में बताये गये हैं । १६ ॥ तदेवं प्रवृत्तमतेर्यद्भवति तद्दर्शयितुमाह - सूत्र तं से अहियाए, तं से अबोहिए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय 'सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेण पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंस, से बेमि - अप्पेगे अंधमन्भे अप्पेगे अंधमच्छे, अप्पेगे पायमन्भे अप्पेगे पायमच्छे अप्पे गुप्फमन्भे अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे, जंघमब्भे अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे अप्पेगे ऊरुमच्छे अप्पेगे कडिमब्भे अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमब्भे अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेगे उदरमब्भे अप्पेगे उदरमच्छे, अप्पेगे पासमन्भे अप्पेगे पासमच्छे, अप्पेगे पिट्ठिमब्भे अप्पेगे पिट्ठिमच्छे, अप्पेगे उरमब्भे अप्पेगे उरमच्छे, अप्पेगे SERIE COGanananananananananananana 99
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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