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________________ भावार्थ:- जिसे साधारण मनुष्य अङ्गीकार नहीं कर सकते उस इंगित मरण को स्वीकार करके धैर्यवान् मुनि इन्द्रियों को अपने विषय से हटा दे। जिस स्थान पर घुण आदि जीव हों उस स्थान को और पाटे को छोड़ कर जीव रहित स्थान का अन्वेषण करे ||१७|| जिस व्यापार से या जिसका आश्रय लेने से वज्र के समान भारी कर्म अथवा पाप की उत्पत्ति होती है। वह साधु उस कार्य को न करे तथा उस काष्ठादि का अवलम्बन न ले किन्तु उन कार्यों से अपनी आत्मा को हटा ले । शुभ ध्यान और शुभ परिणामों पर चढ़ता हुआ मुनि परीषह उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करे ॥१८॥ भक्तपरिज्ञा मरण और इंगित मरण दोनों की अपेक्षा पादपोपगमन मरण उत्कृष्ट है। इसमें भी प्रव्रज्या और संलेखना आदि का क्रम पहले की तरह ही है। इसमें विशेषता यह है कि पादपोपगमन मरणार्थी साधु अपने समस्त अङ्गों को निश्चल रखे । कितना भी कष्ट क्यों न हो वह उस स्थान से किञ्चिन्मात्र न हटे तथा शुभ अध्यवसाय से भी विचलित न हो किन्तु सूखे काठ की तरह निश्चेष्ट होकर स्थिर रहे ॥ १९ ॥ यह पादपोपगमन मरण सब से उत्तम है क्योंकि पूर्वोक्त भक्त परिज्ञा और इंगित मरण की अपेक्षा यह अत्यन्त कष्ट साध्य है । पूर्वोक्त मरणों में तो अङ्गों को संकोचने और फैलाने की छूट है किन्तु इसमें उसका भी निषेध है । इस मरण का आराधन करने वाला साधु यदि लेटा हुआ हो तो लेटा ही रहे, बेठा हुआ हो तो बैठा ही रहे और खड़ा हो खड़ा ही रहे अर्थात् उसका जो अङ्ग जिस तरह स्थित हो उसे उसी तरह रहने दे, उसे जरा भी इधर उधर न हटावे तथा कम्पित न करे ॥ २० ॥ एतदेव प्रकारान्तरेण दर्शयितुमाह अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, न मे देहे परीसहा, ॥ २१ ॥ जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति संखया । संडे देह भेयाए, इय पन्नेऽहियासए ॥ २२ ॥ भेउरेसु न रज्जिज्जा, कामेसु बहुतरेसुवि । इच्छालोभं न सेविज्जा, ध्रुववन्नं सपेहिया ॥ २३ ॥ सासएहिं निमन्तिज्जा, दिव्वमायं न सद्दहे । तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं नूमं विहूणिया ॥ २४ ॥ सव्वद्वेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए । तितिक्खं परमं नच्चा, विमोहन्नयरं हियं ॥ २५ ॥ त्तिबेमि ॥ अचित्तं स्थण्डिलं फलकादि वा तु समासाद्य स्थापयेत् तत्राऽऽत्मानम् । व्युत्सृज्य सर्वशः कायं न मे देहे परीषहाः देहस्य परित्यक्तत्वाद् यदिवा परीषहकृतपीडयोद्वेगाभावात् ॥ २१ ॥ (३०४००००००००००० श्री आचारांग सूत्र
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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