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________________ ભક્તપરિજ્ઞા આદિ ત્રિવિધમરણમાંથી કોઈ એક મરણને પ્રાપ્ત કરવા માટે ઉદ્યમશીલ થયેલો સાધુ પહેલા કષાયોની સંલેખના કરે અર્થાત્ કષાયો પાતળા ઓછા કરે, કષાયોને પાતળા કરતો એવો સાધુ આહારના પ્રમાણને પણ ઘટાડતો જાય અને ઘણો ઓછો આહાર કરે, આ પ્રમાણે કરતા જો સુધાપરિષહ અધિક સતાવે તો પણ સાધુ આહારની ઈચ્છા ન કરે અર્થાત્ તે આ ન વિચારે કે હું થોડા દિવસ આહાર કરી ८ भने पछीथी. संदेपना २रीश. ॥ 3 ॥ સંલેખના કરવામાં પ્રવૃત્ત સાધુ સ્વયંની પ્રશંસા થતી દેખીને અધિક જીવનની ઈચ્છા ન કરે અને ક્ષુધા ભુખની પીડાથી તથા રોગાદિથી ઘબરાઈને જલ્દીથી મરણથી ઈચ્છા ન કરે, પરંતુ તે જીવન અને મરણ કોઈનામાં પણ આસક્ત ન થતો એવો समभावने राधे ॥ ४ ॥ भावार्थः- शास्त्रकारों ने जिस क्रम से जिस क्रिया का विधान किया है उसी प्रकार आचरण करता हुआ संयमी मुनि अन्तिम समय में भक्तपरिज्ञा, इंगितमरण और पादपोपगमन मरण इन त्रिविध मरण में से यथावसर किसी एक मरण द्वारा समाधि पूर्वक इस नश्वर तन का त्याग करे ॥१॥ बुद्धिमान् संयमी पुरुष यथाक्रम से संयम की क्रियाओं का पालन करके अन्तिम समय में भक्तपरिज्ञा, इंगितमरण और पादपोपगमन इन तीन मरणों में से मैं किस मरण के योग्य हूँ, यह निश्चय करके उसी मरण द्वारा समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर आरम्भ से निवृत्त हो जाते हैं और अनुक्रम से कर्मों से छूट जाते हैं ॥२॥ भक्तपरिज्ञा आदि त्रिविध मरण में से किसी एक मरण को प्राप्त करने के लिए उद्यत हुआ साधु पहले कषायों की संलेखना करे अर्थात् कषायों को पतला करे । कषायों को पतला करता हुआ साधु आहार की मात्रा को भी घटाता ज़ाय और बहुत थोड़ा भोजन करे । ऐसा करते हुए यदि क्षुधा परीषह अधिक सतावे तो भी साधु आहार की इच्छा न करे अर्थात् वह यह न सोचे कि मैं थोड़े दिन और आहार कर लूँ फिर संलेखना करूँगा ॥३॥ ... संलेखना करने में प्रवृत्त साधु अपनी प्रशंसा होती देख कर अधिक जीवन की इच्छा न करे और क्षुधा की पीड़ा से तथा रोगादि से धबरा कर शीघ्र मरण की इच्छा न करे किन्तु वह जीवन और मरण किसी में भी आसक्त न होता हुआ समभाव रखे ॥४॥ किभूतस्तर्हि स्यादित्याह - .. मज्झत्थो निजरापेही, समाहिमणुपालए । अन्तो बहिं विऊस्सिन्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥ ५ ॥ जं किंचुवकमं जाणे, आउखेमस्समप्पणो । तस्सेव अन्तरद्वाए, खिप्पं सिक्खिन पंडिए ॥ ६ ॥ गामे वा अदुवा रणे, थंडिले पडिलेहिया । अप्पपाणं तु विनाय, तणाइं संथरे मुणी ॥ ७ ॥ श्री आचारांग सूत्र 000000000000000000000000000७(२९३
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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