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________________ हैं। अचेल यानी अल्प वस्त्र रख कर संयम पालन करने वाले मुनि को वस्त्र सम्बन्धी चिन्ता नहीं होती है कि - मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है। अब मेरे शरीर की रक्षा किस तरह होगी ? तथा सर्दी से कैसे बच सकूँगा । अब मुझे किसी श्रावक से वस्त्र मांगना चाहिए अथवा फटे हुए वस्त्र को सीने के लिए सूई डोरा लाना चाहिए। अथवा इस सूत्र की व्याख्या जिनकल्पी की अपेक्षा से करनी चाहिए। जो जिनकल्पी मुनि होते हैं वे वस्त्र के सम्बन्ध में किसी प्रकार की चिन्ता करते ही नहीं है क्योंकि वे वस्त्र रहित होते हैं। ऐसे मुनि को कभी तृण की शय्या पर सोने से तृणों का रूक्ष स्पर्श पीड़ित करता है । इसी प्रकार उन्हें कभी सर्दी गर्मी और कभी डांस मच्छर आदि के कष्ट सहन करने पड़ते हैं। इस प्रकार वे कायाक्लेश रूप तप करते हैं ऐसा तीर्थङ्कर भगवान् फरमाते हैं ॥१८५॥ एतच्चाधिसहमानानां यत्स्यात्तदाह - आगयपण्णाणाणं किसा बाहा भवंति पयणुए य मंससोणिए विस्सेणिं कट्ट परिण्णाय, एस तिण्णे . मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि ॥ १८६ ॥ आगतप्रज्ञानानां कृशा बाहवो बाधा वा-पीडा भवन्ति प्रतनुके च मांसशोणिते । संसारहेतुभूतां रागद्वेषकषायश्रेणी क्षान्त्यादिना विश्रेणी कृत्वा तथा परिज्ञाय - ज्ञात्वा समत्वभावनया कूरगडुप्रायमपि न हीलयति । एष तीर्णो मुक्तो विरतो व्याख्यात इति ब्रवीमि ॥ १८६ ॥ अन्वयार्थ :- आगयपण्णाणाणं - मोने पार्थानु शान 25 गये ते मापु३षोनी बाहा - मुमो तपस्याने २९॥थी किसा - दृश (पातणी) भवंति - 250य . य मने मंससोणिए - तमोना मांस भने सोही ५९. पयणुए - भोछ। 25 14 छ. २॥द्वेष भने उपाय३५. संसारमा उतरवानी श्रे िछ, तेने परिणाय - ४ ५३५ क्षमा मान द्वारा विस्सेणिं कट्ट - विश्रेणी रीने भेट 3 नाश धरीने संयममा रत २ छ एस - ते. तिण्णे - संसारथी. तरेतो. मुत्ते - भुत. मने विरए - विरत (423८.) वियाहिए - उदो छ. त्ति बेमि - मा प्रभारी हुँ ४९ धुं. . ભાવાર્થ :- જે મુનિ સંસારના સ્વરૂપને સારી રીતે જાણી લે છે તેને કોઈ પણ પદાર્થ ઉપર મમત્વભાવ હોતો નથી, તે તપ કરવામાં ઉદ્યમશીલ હોય છે જેથી તેના શરીરનું લોહી અને માંસ સુકાઈને ઓછા થઈ જાય છે. તેઓ સંસારના કારણભૂત રાગ-દ્વેષ-કષાયાદિને પણ નષ્ટ કરી દે છે. તેઓ તીર્થંકરપ્રભુના વચનાનુસાર ઉત્તમ સંયમના પાલનમાં તત્પર રહે છે. આવા ગુણોથી યુક્ત મુનિને સંસારથી પાર પામેલા छ तेम सम४. ॥ १८६॥ भावार्थः- जो मुनि संसार के स्वरूप को भली प्रकार जान लेता है उसे किसी भी पदार्थ पर ममत्व नहीं होता है । वह तपस्या में रत रहता है जिससे उसके शरीर का रक्त और मांस सूख कर कम हो जाता है । वह २२६)0OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO |श्री आचारांग सूत्र
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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