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________________ श्रा धूताख्यनामक षष्ठ अध्ययन र प्रथम उद्देशकः । પાંચમા અધ્યયનમાં લોકમાં સારભૂત સંયમ અને મોક્ષનું વર્ણન કર્યું, તે મોક્ષ, નિસંગ થયા વિના અને કર્મોનો ક્ષય કર્યા વગર થતા નથી એટલે આ વિષયોને પ્રતિપાદન કરવા માટે આ અધ્યયનનો આરંભ કરાય છે આમાં કર્મોનો ક્ષય કરવાનો उपहेश छे. मे ४ भानु नाम 'धूत' अध्ययन छे. पाँचवें अध्ययन में लोक में सार भूत संयम और मोक्ष का वर्णन किया गया है । वह मोक्ष निःसङ्ग हुए बिना और कर्मों का क्षय किये बिना नहीं होता है। इसलिए इन विषयों का प्रतिपादन करने के लिए छट्टे अध्ययन का आरम्भ किया जाता है । इस अध्ययन में कर्मों के विधूनन का यानी क्षय करने का उपदेश है इसलिए इसका नाम 'धूत' अध्ययन है। अनन्तरं मुक्तिस्वरूपमुक्तम् इह तु तन्मार्ग कीर्तयतीत्याह... इमां चाऽवस्थामनुभवृन्तीत्याह - ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से णरे, जस्स इमाओ जाइओ सब्बओ सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से णाणमणेलिसं, से किट्टइ तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं एवं एगे महावीरा विप्परक्कमंति, पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपण्णे से बेमि, से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छण्णपलासे उम्मगं से णो लहइ भंजगा इव सण्णिवेसं णो चयंति एवं एगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाया रूवेहिं सत्ता कलुणं थणंति णियाणओ ते ण लहंति मुक्खं, अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताए जाया । ___ गंढी अहवा कोढी, रायंसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ॥ उदरिं च पास मुयं च, सूणीयं च गिलासणिं । वेवई पीढसप्पिं च, श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000(२०७)
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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