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________________ जो ज्ञानवान पुरुष विषय भोगों में आसक्त नहीं होता है वह इन्द्रियों को जीतने वाला और तीनों जगत के यथार्थ स्वरूप का मनन करने वाला मुनि ही ज्ञान दर्शन चारित्र रूप मोक्ष के मार्ग पर जाने वाला होता है और वही संसार को भयदायक देखने वाला होता है। सांसारिक मनुष्य और पाखण्डी लोग मोक्ष से विपरीत मार्ग से जा रहे हैं यह जान कर मुनि कर्म बन्ध के कारणभूत आसवों का त्याग कर देता है। संसार के सभी प्राणी पृथक् पृथक् अपना सुख दुःख भोगते हैं। सभी प्राणियों को सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय है यह विचार कर किसी प्राणी को दुःख न देना चाहिए, किसी भी प्राणी की हिंसा न करनी चाहिए और किसी भी सावध कार्य का आरम्भ न करना चाहिए ॥ १५४ ॥ यश्च प्रजास्वतरः आरम्भरहितः स किम्भूतः स्याद् इति आह - से वसुमं सबसमण्णागयमण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिजं पावं कम्मं तं णो अण्णेसी, जं सम्मं ति वासह तं मोणं ति पासह, जं मोणं ति पासह तं सम्मं ति पासह, ण इमं सक्कं सिढिलेहिं आइज्जमाणेहिं, गुणांसाएहिं वंकसमायरेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं, मुणी मोणं समायाए धुणे कम्मसरीरगं, पंतं लूह सेवंति वीरा सम्पत्तदंसिणो, एस ओहंतरे मुणी, तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि ॥१५५॥ - स वसुमान् - संयमी सर्वसमन्वागतप्रज्ञानेन - सम्यक्स्वीकृतसर्वसदसद्विवेकेन आत्मना अकरणीयं पापकर्म तद् नो अन्वेषति । यत् सम्यक् प्रज्ञानं सम्यक्त्वं वा इति एतत् पश्यत तद् मौनं-मुनित्वम् इति-एतत् पश्यत यद् मौनम् इति एतत् पश्यत तत् सम्यक्त्वं इति - एतत् पश्यत सम्यक्त्वज्ञानचरणानामेकताऽध्यवसेयेति भावार्थः । न एतत् - सम्यक्त्वादित्रयम् अनुष्ठातुं शिथिलैः आदीयमानैः - पुत्रकलत्रादिस्नेहादाद्रीक्रियमाणैः, गुणास्वादैः-विषयलम्पटैः, वक्रसमाचारैः - मायाविभिः प्रमत्तैः अगारमावसद्भिः आद्याक्षरलोपात् गृहस्थैः । मुनिौन-संयमं समादाय धुनीयात् शरीरकं, - औदारिकं कार्मणं वा । प्रान्तं रूक्षं सेवन्ते वीराः समत्वदर्शिनः सम्यग्दर्शिनो वा । एष ओधन्तरो - भावौघं - संसारं तरति मुनिः । तीर्णो मुक्तो विरतो व्याख्यात इति ब्रवीमि ॥१५५॥ .. अन्वयार्थ :- से - ते. वसुमं - धनवान् अथात् संयम३५ धननो स्वामी संयमी Y३५ सब्बसमण्णागयपण्णाणेणं - समस्त पार्थोनु यथार्थ शान रामपण. अप्पाणेणं - व आचारांग सूत्र 790/9999999999%96%90%A9%90ADHARYA5% १७९)
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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