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________________ જ ખરેખર સંયમનું પાલન કરે છે. તેઓ પ્રથમભંગના સ્વામી ઉત્તમકોટિના સાધુ છે જેમકે કાકંદીના ધન્ના અણગાર, ગૌતમકુમાર, ગજસુકુમાળ આદિ ૯૦ મહાપુરૂષ (अंतगसूत्र) - - કોઈ પુરૂષ સંયમ સ્વીકાર કરીને પછીથી તે સંયમથી પતિત થાય છે. એવા પુરૂષ બીજા ભંગના સ્વામી છે. જેમ કે પુંડરીક રાજાનો ભાઈ કંડરીક મુનિ (જ્ઞાતાસૂત્ર २५.१८) જે પહેલા સંયમ ગ્રહણ કરતા નથી, બાદમાં પતિત પણ થતાં નથી. આ ત્રીજો ભાંગો છે. પરંતુ આ ભાંગો શૂન્ય છે આ ભંગના સ્વામી ગૃહસ્થ છે અને શાક્ય આદિ પણ આ ભંગમાં છે કારણ કે તેઓ સાવઘયોગનો ત્યાગ કરતા નથી, જેથી તે ગૃહસ્થ સમાન જ છે. તથા જેઓ સાવદ્યયોગનો ત્યાગ કરી પાછા પચન-પાચનાદિ કરે, કરાવે छे तेस्रो पए। गृहस्थतुल्य ४ छे. ॥ १५२ ॥ भावार्थ :- कोई मनुष्य संसार के स्वरूप को भली प्रकार जान कर सिंह के समान वीरता पूर्वक घर को छोड़ कर दीक्षा लेते हैं और सिंह के समान ही संयम का पालन करते हैं वे प्रथम भंग के स्वामी उत्तम कोटि के महात्मा हैं । जैसे कि - काकंदी का धन्ना अनगार, गौतमकुमार, गजसुकुमाल आदि ९० महापुरूष ( अन्तगड सूत्र) । कोई पुरूष संयम स्वीकार करके फिर संयम से गिर जाते हैं। ऐसे पुरूष दूसरे भंग के स्वामी हैं। जैसे कि- पुंडरीक राजा का छोटा भाई कंडरीक मुनि ( ज्ञातासूत्र अ. १९) । जो पहले संयम ग्रहण नहीं करता है। और पीछे पतित हो जाता है यह तीसरा भंग है किन्तु यह शून्य है इसलिए तीसरा भंग इस सूत्र में नहीं लिखा गया है । कोई ऐसे पुरूष होते हैं जो न तो दीक्षा ग्रहण करते हैं और पीछे गिरते भी नहीं । इस भंग के स्वामी गृहस्थ हैं और शाक्य आदि भी इसी भंग में हैं क्योंकि वे सावद्य योग का त्याग नहीं करते हैं अतः वे गृहस्थ के तुल्य ही हैं ॥ १५२ ॥ स्वमनीषिकापरिहारार्थमाह - एयं णियाघ मुणिणा पवेइयं, इह आणाकंखी पंडिए अणिहे पुव्यावररायं जयमाणे, सया सीलं संपेहाए सुणिया भवे अकामे अझंझे, इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ ? ॥ १५३ ॥ एतद् उत्थानपतनादिकं ज्ञात्वा मुनिना - तीर्थकृता प्रवेदितम् । इहमौनीन्द्रप्रवचने आज्ञाकाङ्क्षी पण्डितः अस्निहः पूर्वापररात्रं यतमानः सदाचारमाचरेत् । किंच्- सदा शीलं सम्प्रेक्ष्य श्रुत्वा भवेद् अकामः अझञ्झः, अनेनैव स्वैरिणा शरीरेण सार्धं युद्धस्व किं ते युद्धेन बाह्यतः ? नातोऽपरं • दुष्करमस्तीति ॥१५३॥ श्री आचारांग सूत्र ८७७७७०० anananananana 904
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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