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________________ हैं और कितनेक पुरूष उन सावद्य अनुष्ठानों को ही अपना शरण मानते हैं किन्तु यह उनकी अज्ञानता है। कितनेक पाखण्डी लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए साधु का वेष पहन कर अकेले विचरते हैं । वे अत्यन्त क्रोधी, मानी, मायी और लोभी होते हैं । वे सदा शंकित रहते हैं कि - मुझको पाप कर्म करते हुए कोई देख न ले । वे अज्ञान और प्रमाद के वशीभूत होकर छिप कर पाप कर्म करते हैं जिससे कर्मबन्ध कर वे कर्मों से भारी होते हैं । ऐसे पुरुष बारबार संसार चक्र में घूमते हुए नरकादि गतियों को प्राप्त करते हैं ॥ १४५ ॥ द्वितीय उद्देशकः) પહેલા ઉદ્દેશામાં જિનાજ્ઞાથી વિરૂદ્ધ એકલો વિહાર કરવાવાળો મુનિ નથી, એ બતાવ્યું, જે પ્રકારે મુનિભાવ પ્રાપ્ત કરાય છે તે વસ્તુ આ ઉદ્દેશામાં બતાવે છે. प्रथम उद्देशक में जिनाज्ञा से विरूद्ध अकेला विचरने वाला मुनि नहीं है यह बतलाया गया है । “जिस तरह मुनिभाव प्राप्त किया जाता है" वह इस उद्देशक में बतलाया जाता हैं :अनन्तरं विरतेरभावान्न मुनिरित्युक्तम् । इह तु तद्विपर्ययेण यथा मुनिभावः स्यात्तथोच्यते - . आयंती केयावंती लोयंसि अणारंभजीविणो एएसु चेव अणारंभजीविणो, एत्थोवरए तं झोसमाणे, अयं संधीत्ति अदक्खू, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति अण्णेसी एस मग्गे आरिएहिं पवेइए, उहिए णो पमायए, जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढो छंदा इह माणवा पुढो दुक्खं पवेइयं से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विप्पणोल्लए ॥ १४६॥ यावन्तः केचन लोके अनारम्भजीविनस्ते तेषु- गृहिषु साधवः पङ्कजवत् निर्लेपा भवन्ति । अत्र- आर्हते धर्मे व्यवस्थित उपरतः पापारम्भात् तत्-कर्म क्षपयन् मुनिभावं भजते । अयं सन्धिःअवसर इति अद्राक्षीद् भवानित्यतः क्षणमप्येकं न प्रमादयेत् । कश्च न प्रमादयेद् इत्याह - यः अस्यौदारिकस्य विग्रहस्य-शरीरस्य अयं प्रमादविधुननस्य क्षणः - अवसर इति अन्वेषी । एष मार्ग आर्यैः प्रवेदित इति धर्मचरणाय उत्थितो न प्रमादयेत् ज्ञात्वा दुःखं प्रत्येकं सातं च, पृथक्छन्दा इह मानवास्तेषां पृथग्दुःखं प्रवेदितम् । एवं सति स अनारम्भजीवी अविहिंसन् अनपवदन्-मृषावादमब्रुवन् स्पृष्टः परिषहोपसर्गः स्पर्शान्-शीतोष्णादीन् सहिष्णुतया विप्रणोदयेत् न दुःखासिकयाऽऽत्मानं भावयेदिति ॥१४६॥ (१६६ )OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO | श्री आचारांग सूत्र
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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