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________________ अन्वयार्थ :- जे - ४ ५३५ छेए - निपु-विद्वान् छे से - ते सागारियं - मैथुन ण सेवए - सेवन ४२ता नथी, ४ मशानी एवं कटु - भैथुन सेवन रीने अवियाणओ - शु३नी समक्ष. स्वयंन। त्यतुं निवेहन ४२. नथ. मंदस्स - ते भूना बिइया - all बालया - भूर्णता छ, हु - निश्चयथा लद्धा - प्राप्त थथेद अत्था - ४(मलोगोने ५५५ पडिलेहाए - तेन। इणने वियारीने भने आगमित्ता - तेने दुःसहायी. 19llने अणासेवणयाए - अणासेवणाए - स्वयं तेनु सेवन रे भने मनासेवन द्वा२. आणविज्जा - olt२माने ५९सेवन ४२पार्नु नथी 20 प्रभारी ४॥ त्ति बेमि - २॥ प्रभारी ई उई छु. ભાવાર્થ :- પુણ્ય-પાપ આદિના સ્વરૂપને જાણવાવાળો વિદ્વાન્ પુરૂષ મૈથુનનું સેવન નથી કરતો, જે પાસત્થા આદિ મોહનીયકર્મના ઉદયથી મૈથુન સેવન કરે છે અને સ્વયંની પ્રતિષ્ઠાની રક્ષા માટે ગુરૂજી દ્વારા પૂછાયેલ છતાં જૂઠું બોલે છે અને સ્વયંના ખરાબ કૃત્યને છુપાવે છે તે મૂર્ખ આ બીજી મૂર્ખતા કરે છે કારણ કે મૈથુન સેવન કરવું તે પહેલી મૂર્ખતા અને જુઠું બોલવું તે બીજી મૂર્ખતા કરે છે, જેથી વિવેકી પુરૂષોએ વિચારવું જોઈયે જે કામ ભોગોના ખરાબ ફલનો વિચાર કરીને પ્રાપ્ત થયેલ કામભોગોને ५५. सेवन ४३ नी, मने olnीने भाटे दृष्टांत=६३५ बने. ॥ १४४ ॥ भावार्थ :- पुण्य पापदि के स्वरूप को जानने वाला विद्वान् पुरूष मैथुन का सेवन नहीं करता है । जो पासत्था आदि मोहनीय कर्म के उदय से मैथुन सेवन करता है और अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए गुरू के पूछने पर झूठ बोलता है एवं अपने कुकृत्य को छिपाता है वह मूर्ख यह दूसरी मूर्खता करता है क्योंकि मैथुन सेवन करना पहली मूर्खता है और झूठ बोलना दूसरी मूर्खता है। अतः विवेकी पुरूष को चाहिए कि काम भोगों के बुरे फल को विचार कर प्राप्त हुए काम भोगों का भी सेवन न करे और दूसरों को भी सेवन करने की आज्ञा न देवे ॥ १४४ ॥ . एतच्च वक्ष्यमाणं ब्रवीमीति तदाह - _ पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे, एत्थ फासे पुणो पुणो, आवंती केयावंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी, एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमइ पावेहिं कम्मेहिं, असरणे सरणंति मण्णमाणे, इहमेगेसिं एगचरिया भवइ, से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोभे बहुरए बहुणडे बहुसढे |श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000(१६३
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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