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शस्त्र के द्वारा प्राणियों को भय उत्पन्न होता है । वह शस्त्र दो प्रकार का है। एक द्रव्य शस्त्र और दूसरा भाव शस्त्र । द्रव्य शस्त्र एक दूसरे से तीक्ष्ण से तीक्ष्ण होता है । संयम से किसी भी प्राणी को भय नहीं होता। संयम सब प्राणियों को अभय देने वाला है । वह एक ही प्रकार का है । इसकी भिन्न भिन्न कक्षाएं नहीं हैं क्योंकि संयमधारी पुरुष पृथ्वी आदि समस्त प्राणियों में समभाव रखता है। उसका किसी के साथ द्वेष नहीं होता । अथवा शैलेशी अवस्था वाले संयम से बढ़ कर दूसरा संयम नहीं है क्योंकि उससे ऊपर कोई गुणस्थानक नहीं है ॥ १२४ ॥ असंयमरूप भावशस्त्रं कथं परं परं दुःखावहं भवतीत्याह -
जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गभदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से णरयदंसी, जे णरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी । से मेहावी अभिणिवट्टिज्जा कोहं च माणं च मायं च लोभं च पिज्जं च दोसं च मोहं च गभं च जम्मं च मारं च णरयं च तिरियं च दुक्खं च । एयं पासगस्स दंसणे उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स, आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि, किमत्थि
ओवाही पासगस्स ? ण विज्जइ ?, णत्थि ॥१२५॥
त्ति बेमि ॥ यः क्रोधदर्शी स मानदर्शी यतो यः क्रोधं गच्छति स मानमपि गच्छति । एवमुत्तरमपि योजनीयम् । यो मानदर्शी स मायादर्शी, यो मायादर्शी सो लोभदर्शी, यो लोभदर्शी स प्रेमदर्शी, यः प्रेमदर्शी स द्वेषदर्शी, यो द्वेषदर्शी स मोहदर्शी, यो मोहदर्शी स गर्भदर्शी, यो गर्भदर्शी, स जन्मदर्शी, यो जन्मदर्शी स मारदर्शी - मरणदर्शी, यो मारदर्शी स नरकदर्शी, यो नरकदर्शी स तिर्यग्दर्शी, यस्तिर्यग्दर्शी स दुःखदर्शी । क्रोधादेः साक्षानिवर्तनमाह - स मेधावी अभिनिवर्तयेत् क्रोधं च मानं च मायां च लोभं च द्वेषं च मोहं च गर्भं च जन्म च मारं च नरकं च तिर्यचं च दुःखं च । एतत् पश्यकस्य दर्शनम् उपरतशस्त्रस्य पर्यन्तकरस्य, तथाहि - आदानं निषेध्य
(१३२)00OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO|श्री आचारांग सूत्र