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કરે છે. પરન્તુ જ્યારે વૃદ્ધાવસ્થા આવે ત્યારે મૃત્યુને નજદીક દેખી અત્યંત પશ્ચાતાપ કરે છે. અતઃ વિવેકી પુરૂષોએ પહેલેથીજ વિચાર કરી એવું કાર્ય કરવું જોઈયે જેથી ભવિષ્યમાં કોઈ પણ પ્રકારનો પશ્ચાતાપ કરવો ન પડે || ૯૨ ॥
. भावार्थ :- अनादि काल से अभ्यस्त होने के कारण कामभोगों का जीतना बड़ा कठिन है । कामभोगों की लालसा रखने वाले पुरूष को जब इष्ट पदार्थ की प्राप्ति नहीं होती अथवा उसका वियोग हो जाता है तब वह अत्यन्त शोक करता है, खेद अनुभव करता है, शारीरिक और मानसिक दुःखों से पड़ित रहता है कामासक्त मनुष्य जब तक युवा रहता है तब तक वह यौवन और धन के मद से अन्ध होकर दुराचार का सेवन करता है परन्तु जब वृद्धावस्था आती है तब वह मृत्युकाल को निकट देख कर अत्यन्त पश्चात्ताप करता है । अतः विवेकी पुरुष को पहले से ही सोच विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे भविष्य में किसी तरह का पश्चात्ताप न करना पड़े ॥ ९२ ॥
कः पुनरेवं न शोचत इत्याह
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आययचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहोभागं जाणइ, उडुं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ, गड्डिए लोएं अणुपरियट्टमाणे, संधिं विइत्ता इह मच्चिएहिं, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए, जहा अंतोता बाहिं जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो पूइ देहंतराणि पासइ पुढो वि सवंताई पंडिए पडिलेहाए ॥ ९३ ॥
ऐहिकामुष्मिकापाय दर्शित्वात् आयतचक्षुः लोकविदर्शी लोकस्य अधोभागं जानाति, ऊर्ध्वभागं जानाति, यदि वा गृद्धान् लोके -संसारे पश्येत्युपदेशः । मर्त्येषु एव-मनुष्येष्वेव सन्धिं - ज्ञानादिकं भावसन्धि सम्पूर्णं विदित्वा यो विषयकषायादीन् परित्यजति एष वीरः प्रशंसितो यश्च बद्धान् प्रतिमोचयति, यथा अन्तः-भावबन्धनमष्टप्रकारकर्मनिगडनं विषयाभिष्वङ्गं वा तथा बहिर्बन्धुबन्धनं मोचयति । बहिर्यथा तथाऽन्तरपि । अन्तोऽन्तः पूतिदेहान्तराणि - इह मांसमिह रुधिरमिह मेदो मज्जा चेत्येवमादि पश्यति पृथक् पृथक् अपि स्रवन्ति, अपि शब्दात् कुष्ठाद्यवस्थायां यौगपद्येनापि स्रवन्तीति पण्डितः प्रत्युपेक्षेत । ॥९३॥
अन्वयार्थ :- आययचक्खू - दीर्घदृष्टिवाणा तथा लोगविपस्सी - लोडना स्व३पने द्वेषवावाणी पु३ष लोगस्स - लोडना अहोभागं - अधो लागने जाणइ भए छे उड्डभागं - उर्ध्व भागने जाणइ - भएो छे खने तिरियं भागं - तिर्छा भागने जाणइ - भाएगे छे.
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श्री आचारांग सूत्र ७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७८९