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________________ યોગદર્શન २०३ * જ્યાં ચિત્તને કેવળ વિવેકજ્ઞાન હોય છે તે સંપ્રજ્ઞાત સમાધિ કહેવાય છે અને જ્યાં ચિત્તને વિવેકજ્ઞાન પ્રત્યે પણ વિરક્તિ થતાં વિવેકજ્ઞાન પણ અટકી જાય છે તે અસંપ્રજ્ઞાત સમાધિ કહેવાય છે. ८ भगवद्गीता ५. ४ । ८ इसका प्रत्याख्यान नहीं किया जा सकता कि परवर्ती भारतीय धार्मिक जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण तत्त्व सिन्धुसभ्यता से लिये गये, जिनमें विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं - पशुपति, योगीश्वर तथा कदाचित् नटराज के रूपों में शिव की पूजा,... और योगाभ्यास जो कि आसन और मुद्रा के अंकन से संकेतित है ।... ऋक्संहिता के केशिसूक्त में केशधारी, मैले 'गेरुए' कपडे पहने हवा में उडते, जहर पीते, 'मौनेय' से 'उन्मादित' और 'देवेषित' मुनियों का विरल चित्र आलिखित है । मुनियों का उल्लेख ऋक्संहिता में अन्यत्र भी है, पर विरल है, और ऐसा लगता है कि चमत्कार दिखलाते हुए मुनियों के दर्शनने सूक्तकार को विस्मय में और इस भ्रान्ति में डाल दिया था कि वे उन्माद अथवा आवेश में हैं । यहां पर यह भी स्मरणीय है कि निवृत्तिपरक अथवा क्लेशलक्षण तप ऋक्संहिता के सुविदित जीवनदर्शन के विरुद्ध था तथा योगजन्य सिद्धियां उनकी अपरिचित थीं अतएव यह स्वाभाविक है कि मुनियों का आचरण वैदिक ऋषियों को विचित्र प्रतीत हो । ... सांख्य के साधनपक्ष का कुछ परिचय तो सांख्य के सिद्धान्तपक्ष के परिचय से ही आक्षेप्य है । इस के अतिरिक्त योग की अन्य प्रक्रियाओं का सांख्य से कोई अपरिहार्य संबंध नहीं है और उनका कुछ-न-कुछ परिचय नाना प्रकार के रहस्यवाद की परम्पराओं में मिलता है । किन्तु, गुरु-शिष्यपरम्परा में संरक्षित, एक व्यवस्थित आध्यात्मिक विज्ञान के रूप में योगविद्या सांख्यादि श्रमण - सम्प्रदायों में उद्भूत और परिपुष्ट हुई । बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास ( डा. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय) पृ० २ - १५ । १०. Philosophies of India (Zimmer ), p. 283 ११. परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुणवृत्तिविरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकनः । योगसूत्र २. १५ । अभिधर्मकोशव्याख्या (Woghara 1971) पृ० २३ १२. हेयं दुःखमनागतम् । योगसूत्र २. १६ । १3. द्रष्टृदश्ययोः संयोगो हेयहेतुः । योगसूत्र २. १७ । १४. तस्य हेतुरविद्या । योगसूत्र २. २४ । १५. परमार्थतस्तु ज्ञानाददर्शनं निवर्तते । योगभाष्य ३. ५५ । १६. योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः । योगसूत्र २. १८ ।
SR No.005833
Book TitleShaddarshan Part 01 Sankhya Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagin J Shah
PublisherUniversity Granthnirman Board
Publication Year1973
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
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