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१०६ ] सिद्ध डेभ - जालावओोधिनी
सूत्रम् ।
सूत्राङ्क ।
बिडबिरी० ॥ ७-१-१२९॥ बिडादेवृद्धे ॥ ६-१-४१ ॥ बिभतेषु च ॥ ३-३-९२ ॥ बिल्वकीयादे० ॥ २-४-९३ ॥ ब्रह्मणः ॥ ७-४-५७ ॥ ब्रह्मणस्त्वः ॥ ७-१-७७ ।। ह्मणो वदः ॥ ५-१-१५६ ॥ ब्रह्मभ्रूण० ॥ ५-१-१६१ ॥
हस्ति ॥ ७-३-८३ ॥ ब्रह्मादिभ्यः ॥ ५-१-८५ ॥ ब्राह्मणमाण० ॥ ६-२-१६ ।। ब्राह्मणाच्छंसी । ३-२-११ ॥ बाह्मणाद्रा || ६-१९-३५ ॥ वाह्मणान्नानि ॥ ७-१-१८४ ॥ ध्रुवः ||५-१-५१ ॥ ब्रूगः पञ्चानां० ॥४-२-११८॥ व्रतः परादिः ॥ ४-३-६३ ॥ भक्ताण्णः ॥ ७-१-१७ ॥ भक्तौदनाद्वा० ॥ ६४–७२ ।। भहिंसायाम् ।। २-२-६ । भक्ष्य हितमस्मै ॥ ६-४-६९ ॥ भजति ॥ ६-३-२०४ ॥ भजो विण् ॥ ५-१-१४६ ॥ भञ्जिभसिमिदो० ॥५-२-७४॥ भो वा ॥ ४-२-४८ ॥
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सूत्रम् । सूत्राङ्कः । भद्रोणात्करणे ॥ ३-२-११६॥ भर्गात् त्रैगर्ते ॥ ६-१-५१ ॥ भर्तुस्तुल्यस्वरम् ॥३-१-१६२॥ भर्तुर्वध्यादेरण ॥ ६-३-८९ ॥ भर्त्सने पर्यायेण ॥ ७-४-९० ॥ भवतेः सिज्लुपि ॥ ४-३-१२॥ भवतोरिकणी० ॥ ६-३-३० ॥ भवत्वायु० ॥ ७-२-९१ ॥ भविष्यन्ती ॥ ५- ३-४ ॥ भविष्यन्ती - हे ॥ ३-३-१५ ॥ भवे ॥ ६-३-१२३ ॥ भव्यगेयजन्य० ॥ ५-१-७ ॥ भस्त्रादे रिकट् ॥ ६-४-२४ ॥ भागविसिता ॥ ६-१-१०५॥ भागाद्येकौ ॥ ६-४-१६० ॥ भागिनि च० ॥ २-२-३७ ॥ भागेऽष्टमाञ्ञः ॥ ७-३-२४।। भाजगोण - शे ॥ २-४-३० ॥ भाण्डात्समाचितौ । ३-४-४० ॥ भादितो वा ॥ २-३-२७ ॥ भान्नेतुः ॥ ७-३-१३३ भावकर्मणोः ॥ ३-४-६८ ॥ भावघञों ।। ६-२-११४ ॥
भाववचनाः ।। ५-३-१५ ॥ भावाकत्रोः ।। ५-३-१८ ॥