________________
શ્રી સિદ્ધહેમચન્દ્રશબ્દાનુશાસનમૂત્રાકારાદ્યનુક્રમણિકા [ ૬ ૦૫
सूत्रम् । सूत्राङ्क । बलवातादूलः ॥ ७-१-९१ ॥ वलादेर्यः ॥ ६-२-८६॥ बलिस्थूले० ॥ ४-४-६९ ॥ austerit ॥ ६-१-२० ॥ बहिंषष्टी० ॥ ६-१-१६॥ बहुग दे ॥ १-१-४० ॥ वहुलम् ||५-१-२ ॥ बहुलं लुप् ॥ ३-४-१४ ॥ बहुलमन्येभ्यः ॥ ६-३–१०९ ॥ बहुलानुराधा० ॥६-३-१०७॥ बहुविध्वरु० ॥ ५-१-१२४ ॥ बहुविषयेभ्यः ॥ ६-३-४५ ॥ बहुव्रीहेः ॥ ७-३-१२५ ॥ बहुष्वस्त्रियाम् ॥ ६-१-१२४॥ बहुष्वेरीः ॥ २-१-४९ ॥ बहुस्वर० ॥ ६-४-६८ ॥ बहूनां प्रश्ने० ॥ ७-३-५४ ॥ बोर्डे ॥ ७-३-७३ ॥ बहोणष्टे० ॥ ७-४-४० ॥ बहोसन्ने ॥ ७-२-११२ ॥ बह्वल्पार्था० ॥ ७-२-१५० ॥ बाढान्तिक० ॥ ७-४-३७ ॥ बाहूवादे० ॥ ७-२-६६ ॥ बाह्रान्तक० ॥। २-४-७४ ॥ वाह्वादिभ्यो । ६-१-३२ ॥
सूत्राङ्क
सूत्रम् । प्रियसुख - छे ॥ ७४-८७ ॥ प्रियसुखादा० ॥ ७-२-१४० ।। प्रियस्थिर० ॥ ७-४-३८ ।। पुसृल्कोऽकः० ।। ५-१-६९ ॥ प्रेक्षादेरिन् ॥ ६-२-८० ॥ प्रेषानुज्ञावसरे० ॥ ५-४-२९ ॥ प्रोक्तात् ॥ ६-२-१२९ ।। प्रोपादारम्भे ॥ ३-३-५१ ॥ प्रोपोत्स - णे ॥ ७-४-७८ ॥ प्रोष्ठभद्राजाते ॥ ७-४-१३ ॥ लक्षादेरण् ॥ ६-२-५९ ॥ प्लुताद्वा ॥ १-३-२९ ॥ प्लुतोऽनितौ ॥ १-१-३२ ॥
पचादो० ॥ ७-४-८१ ॥ प्वादेर्ह्रस्वः ॥ ४-२-१०५ ॥ फलवर्हाच्चेनः ॥ ७–२–१३ ॥ फलस्य जातौ ॥ ३-१-१३५ ॥ फले ॥ ६-२-५८ ॥ फल्गुनी प्रो० ॥ २-२-१२३ ॥ फल्गुन्याष्टः ॥ ६-३-१०६ ॥ फेनोष्मवाष्प० ॥ ३-४-३३ ॥ बन्धे घञि नवा ॥ ३-२-२३॥ बन्धेननि ॥ ५-४-६७ ॥ बन्ध बहुवीहौ ॥ २-४-८४॥ बलवातदन्त० ॥ ७–२–१९ ॥