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श्री दशकालिकसूत्र भाषांतर
चतर्थ अध्ययन में जीव. अजीव चारित्र. यतना.उपदेश. धर्मफल आदि का परिचय दिया है। पञ्चम अध्ययन में श्रमण के उत्तरगण-पिण्डस्वरूप, भक्तपानेषणा.गमनविधि,गोचरविधि, पानकविधि, परिष्ठा भोजनविधि, आदि पर विचार किया गया है। षष्ठ अध्ययन में धर्म, अर्थ, काम, व्रतषट्क, कायषट्क आदि का प्रतिपादन है। इसमें आचार्य का संस्कृतभाषा के व्याकरण पर प्रभुत्व दृष्टिगोचर होता है। सप्तम अध्ययन में भाषा सम्बन्धी विवेचना है। अष्टम अध्ययन में इन्द्रियादि प्रणिधियों पर विचार किया है। नौवें अध्ययन में लोकोपचार विनय, अर्थविनय, कामविनय, भयविनय, मोक्षविनय की व्याख्या है। दशम अध्ययन में भिक्षु के गुणों का उत्कीर्तन किया है। चूलिकाओं में रति, अरति, विहारविधि, गृहिवैयावृत्य का निषेध, अनिकेतवास प्रभृति विषयों से सम्बन्धित विवेचना है। चूर्णि में तरंगवती, ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति आदि ग्रन्थों का नामनिर्देश भी किया गया है।
प्रस्तुत चूर्णि में अनेक कथाएं दी गयी हैं, जो बहुत ही रोचक तथा विषय को स्पष्ट करनेवाली हैं। उदाहरण के रूप में हम यहाँ एक-दो कथाएँ दे रहे हैं -
प्रवचन का उड्डाह होने पर किस प्रकार प्रवचन की रक्षा की जाए? इसे समझाने के लिए हिंगुशिव नामक वानव्यन्तर की कथा है। एक माली पुष्पों को लेकर जा रहा था। उसी समय उसे शौच की हाजत हो गयी। उसने रास्ते में ही शौच कर उस अशुचि पर पुष्प डाल दिए। राहगीरों ने पूछा – यहाँ पर पुष्प क्यों डाले रखे हैं? उत्तर में माली ने कहा – मुझे प्रेतबाधा हो गयी थी। यह हिंगुशिव नामक वानव्यन्तर है।
इसी प्रकार यदि कभी प्रमादवश प्रवचन की हँसी का प्रसंग उपस्थित हो जाय तो उसकी बुद्धिमानी से रक्षा करें।
एक लोककथा बुद्धि के चमत्कार को उजागर कर रही है - ___ एक व्यक्ति ककड़ियों से गाड़ी भरकर नगर में बेचने के लिए जा रहा था। उसे मार्ग में एक धूर्त मिला, उसने कहा - मैं तुम्हारी ये गाड़ी भर ककड़ियाँ खा लूं तो मुझे क्या पुरस्कार दोगे? ककड़ी वाले ने कहा – मैं तुम्हें इतना बड़ा लड्डू दूंगा जो नगरद्वार में से निकल न सके। धूर्त ने बहुत सारे गवाह बुला लिए और उसने थोड़ी
थोड़ी सभी ककड़ियाँ खाकर पुनः गाड़ी में रख दी और लगा लड्डू मांगने। ककड़ी वाले ने कहा – शर्त के • अनुसार तुमने ककड़ियां खायी ही कहाँ है? धूर्त ने कहा – यदि ऐसी बात है तो ककड़ियाँ बेचकर देखो।
- ककड़ियों की गाड़ी को देखकर बहुत सारे व्यक्ति ककड़ियाँ खरीदने को आ गये। पर ककड़ियों को देखकर उन्होंने कहा – खायी हुई ककड़ियां बेचने के लिए क्यों लेकर आए हो?
____ अन्त में धूर्त और ककड़ी वाला दोनों न्याय कराने हेतु न्यायाधीश के पास पहूँचे। ककड़ी वाला हार गया और धूर्त जित गया। उसने पुनः लड्डू मांगा। ककड़ी वाले ने उसे लड्डू के बदले में बहुत सारा पुरस्कार देना चाहा पर वह लड्डू लेने के लिए ही अड़ा रहा। नगर के द्वार से बड़ा लड्डू बनाना कोई हँसी-खेल नहीं था। ककड़ी वाले को परेशान देखकर एक दूसरे धूर्त ने उसे एकान्त में ले जाकर उपाय बताया कि एक नन्हा सा लड्डू बनाकर उसे नगर द्वार पर रख देना और कहना – 'लड्डू! दरवाजे से बाहर निकल आओ।' पर लड्डू निकलेगा नहीं, फिर तुम वह लड्डू उसे यह कहकर दे देना कि यह लड्डू द्वार में से नहीं निकल रहा है। . इस प्रकार अनेक कथाएं प्रस्तुत चूर्णि में विषय को स्पष्ट करने के लिए दी गयी हैं। टीकाएं
चूर्णि साहित्य के पश्चात् संस्कृतभाषा में टीकाओं का निर्माण हुआ। टीकायुग जैन साहित्य के इतिहास