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________________ ૪૨ श्री दशकालिकसूत्र भाषांतर ६. दिक्, ७. तापक्षेत्र, ८. प्रज्ञापक, ९. पूर्व, १०. वस्तु, ११. प्राभृत, १२. अति प्राभृत, १३. भाव। उसके पश्चात् काम पर भी निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया है। भाव-काम के इच्छा-काम और मदन-काम ये दो प्रकार हैं। इच्छाकाम प्रशस्त और अप्रशस्त, दो प्रकार का होता है। मदन-काम का अर्थ - वेद का उपयोग, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद आदि का विपाक अनुभव। प्रस्तुत अध्ययन में मदन-काम का निरूपण है।६१ इस प्रकार इस अध्ययन में पद की भी निक्षेप दृष्टि से व्याख्या है।१६२ · तृतीय अध्ययन में क्षुल्लक अर्थात् लघु आचारकथा का अधिकार है। क्षुल्लक, आचार और कथा इन तीनों का निक्षेप दृष्टि से चिन्तन है। क्षुल्लक का नाम, स्थापना, द्रव्य और क्षेत्र, काल, प्रधान, प्रतीत्य और भाव इन आठ भेदों की दृष्टि से चिंतन किया गया है। आचार का निक्षेपदृष्टि से चिंतन करते हुए नामन, धावन, वासन, शिक्षापान आदि को द्रव्याचार कहा है और दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य को भावाचार कहा है। कथा के अर्थ, पौर मिश्र ये चार भेद किए गए हैं और उनके अवान्तर भेद भी किए गए हैं। श्रमण क्षेत्र, काल, पुरुष, सामर्थ्य प्रभृति को लक्ष्य में रखकर ही अनवद्य कथा करें।१६३ ___ चतुर्थ अध्ययन में षट्जीवनिकाय का निरूपण है। इसमें एक, छह, जीव, निकाय और शास्त्र का निक्षेपदृष्टि से चिन्तन किया गया है। जीव के लक्षणों का प्रतिपादन करते हुए बताया है - आदान, परिभोग, योग, उपयोग. कषाय.लेश्या. आंख. आपान, इन्द्रिय, बन्ध. उदय, निर्जरा, चित्त, चेतना, संज्ञा, विज्ञान, धारण, बुद्धि, ईहा, मति, वितर्क से जीव को पहचान सकते हैं।१६४ शस्त्र के द्रव्य और भाव रूप से दो प्रकार बताए हैं। द्रव्यशस्त्र स्वकाय, परकाय और उभयकायरूप होता है तथा भावशस्त्र असंयमरूप होता है।६५ * पंचम अध्ययन भिक्षा-विशुद्धि से सम्बन्धित है। पिण्डैषणा में पिण्ड तथा एषणा – ये दो पद हैं, इन पर निक्षेपपूर्वक चिन्तन किया गया है। गुड़, ओदन आदि द्रव्यपिण्ड हैं और क्रोध, मान, माया, लोभ ये भाव पिण्ड हैं। चित्त, अचित्त और मिश्र के रूप में तीन प्रकार की है। भावैषणा प्रशस्त और अप्रशस्त रूप से दो प्रकार -ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि प्रशस्त भावषणा हैं और क्रोध आदि अप्रशस्त भावैषणा है। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्यैषणा का ही वर्णन किया गया है, क्योंकि भिक्षा-विशुद्धि से तप और संयम का पोषण होता है।१६६ .. छठे अध्ययन में बृहद् आचारकथा का प्रतिपादन है। महत् का नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रधान, प्रतीत्य और भाव इन आठ भेदों से चिन्तन किया है। धान्य और रत्न के चौबीस-चौबीस प्रकार बताये गये हैं।१६७ सप्तम अध्ययन का नाम वाक्यशुद्धि है। वाक्य, वचन, गिरा, सरस्वती, भारती, गो, वाक्, भाषा, प्रज्ञापनी, देशनी, वाग्योग, योग ये सभी एकार्थक शब्द हैं। जनपद आदि के भेद से सत्यभाषा दस प्रकार की होती है। क्रोध आदि के भेद से मृषाभाषा भी दस प्रकार की होती है। उत्पन्न होने के प्रकार से मिश्रभाषा अनेक प्रकार ..की है और असत्यामृषा आमंत्रणी आदि के भेद से अनेक प्रकार की है। शुद्धि के भी नाम आदि चार निक्षेप हैं। . १६१ दशवैकालिक गाथा १६१-१६३ १६२ दशवकालिक गाथा १६६-१७७ १६३ दशवकालिक 'गाथा १८८-२१५ ।। १६४ दशवकालिक गाथा २२३-२२४ १६५ दशवैकालिक गाथा २३१ १६६ दशवैकालिक गाथा २३४-२४४ • १६७ दशवैकालिक गाथा २५०-२६२
SR No.005784
Book TitleDashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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