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श्री दशवैकालिकसूत्र भाषांतर
भावशुद्धि तद्भाव,
आदेशभाव और प्राधान्यभाव रूप से तीन प्रकार की हैं । १६८
अष्टम अध्ययन आचार प्रणिधि है । प्रणिधि द्रव्य प्रणिधि और भावप्रणिधि रूप से दो प्रकार की है। निधान आदि द्रव्यप्रणिधि है । इन्द्रियप्रणिधि और नोइन्द्रियप्रणिधि ये भावप्रणिधि हैं, जो प्रशस्त और अप्रशस्त रूप से दो प्रकार की है । १६९
नवम अध्ययन का नाम विनयसमाधि है। भावविनय के लोकोपचार, अर्थीनिमित्त, कामहेतु, भय, निमित्त और मोक्षनिमित्त, ये पाँच भेद किए गए हैं। मोक्षनिमित्त विनय के दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और उपचार सम्बन्धी पाँच भेद किये गए हैं । १७०
दशवें अध्ययन का नाम सभिक्षु है। प्रथम नाम, क्षेत्र आदि निक्षेप की दृष्टि से 'स' पर चिंतन किया है। उसके पश्चात् 'भिक्षु' का निक्षेप की दृष्टि से विचार किया है। भिक्षु के तीर्ण, तायी, द्रव्य, व्रती, क्षान्त, दान्त, विरत, मुनि, तापस, प्रज्ञापक, ऋजु, भिक्षु, बुद्ध, यति, विद्वान्, प्रव्रजित, पाखण्डी, चरक, ब्राह्मण, परिव्राज्ञक, श्रमण, निर्ग्रन्थ, संयत, मुक्त, साधु, रुक्ष, तीरार्थी आदि पर्यायवाची नाम दिये हैं। पूर्व में श्रमण के जो पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं उनमें भी इनमें के कुछ शब्द आ गये हैं । १७१
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चूलिका का निक्षेप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप से चार प्रकार का है। यहाँ पर भावचूला अभिप्रेत है, जो क्षायोपशमिक है। रति का निक्षेप भी चार प्रकार का है। जो रतिकर्म के उदय के कारण होती है - वह भावरति है, वह धर्म के प्रति रतिकारक और अधर्म के प्रति अरतिकारक है। इस प्रकार दशंवैकालिकनियुक्ति की तीन सौ इकहत्तर गाथाओं में अनेक लौकिक और धार्मिक कथाओं एवं सूक्तियों के द्वारा सूत्रार्थ को स्पष्ट किया गया हैं। हिंगुशिव, गन्धर्विका, सुभद्रा, मृगावती, नलदाम और गोविन्दवाचक आदि की कथाओं का संक्षेप में नामोल्लेख हुआ है। सम्राट कूणिक ने भगवान से जिज्ञासा प्रस्तुत की भगवन्! चक्रवर्ती मर कर कहाँ उत्पन्न होते हैं। समाधान दिया गया - संयम ग्रहण न करें तो सातवें नरक में। पुनः जिज्ञासा प्रस्तुत हुई - भगवन्! मैं कहाँ पर उत्पन्न होऊँगा? भगवान ने समाधान दिया - छठे नरक में । प्रश्नोत्तर के रूप में कहीं-कहीं पर तार्किक शैली के भी दर्शन होते हैं।
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भाष्य
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१६८ दशवैकालिक गाथा २६९ - २७०; २७१ - २७६ २८६
१६९ दशवैकालिक गाथा २९३ - २९४
१७० दशवैकालिक गाथा ३०९ - ३२२ १७१ दशवैकालिक गाथा ३४५-३४७
नियुक्तियों की व्याख्याशैली बहुत ही संक्षिप्त और गूढ थी। नियुक्तियों का मुख्य लक्ष्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना था । नियुक्तियों के गुरु गम्भीर रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए कुछ विस्तार से प्राकृत भाषा में जो पद्यात्मक व्याख्याएं लिखीं गयी, वे भाष्य के नाम से विश्रुत हैं। भाष्यों में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथाएँ और परम्परागत श्रमणों के आचार-विचार और गतिविधियों का प्रतिपादन किया गया है। दशवैकालिक पर जो भाष्य प्राप्त है, उसमें कुल ६३ गाथाएं हैं। दशवैकालिकचूर्णि में भाष्य का उल्लेख नहीं है, आचार्य हरिभद्र