SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री दशवैकालिकसूत्र भाषांतर जो यतना से चलता है, यतना से ठहरता है और यतना से सोता है, यतना से भोजन करता है, यतना से भाषण करता है, वह पापकर्म का बंधन नहीं करता । इतिवृत्तक में भी यही स्वर प्रतिध्वनित हुआ है यतं चरे, यतं तिट्ठे यतं अच्छे यतं सये। यतं सम्मिञ्जये भिक्खू यतमेनं पसारए । । योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः। सर्वभूतात्मभूतात्मा, कुर्वन्नपि न लिप्यते ।। दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन की नौवीं गाथा इस प्रकार है - सव्वभूयप्पभूयस्स सम्म पासओ। भुयाइ पहियासवस्स दंतस्स पावकम्मं न बंधई ।। जो सब जीवों को आत्मवत् मानता है, जो सब जीवों को सम्यक् दृष्टि से देखता है, जो आस्रव का निरोध कर चूका है और जो दान्त है, उसे पापकर्म का बन्धन नहीं होता । इस गाथा की तुलना गीता के निम्न श्लोक से की जा सकती है दशवेकालिक के चतुर्थ अध्ययन की दसवीं गाथा है - पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही किं वा नाहिइ छेय-पावगं ॥ - इतिवृत्तक १२ - गीता अध्याय ५, श्लोक ७ योग से सम्पन्न जितेन्द्रिय और विशुद्ध अन्तःकरण वाला एवं सम्पूर्ण प्राणियों को आत्मा के समान अनुभव करने वाला निष्काम कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता । - पहले ज्ञान फिर दया - इस प्रकार सब मुनि स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा? वह कैसे जानेगा कि क्या श्रेय है और क्या पाप है? इसी प्रकार के भाव गीता के चतुर्थ अध्ययन के अड़तीसवें श्लोक में आए हैं न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । तत्समयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।। कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता, काले कालं समायरे ।। 39. इस गाथा की निम्न से तुलना करें - गीता ४।३८ इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को कितनेक काल से अपने आप समत्व बुद्धिरूप योग के द्वारा अच्छी प्रकार शुद्धान्तःकरण हुआ पुरुष आत्मा में अनुभव करता है। दशवैकालिक के पांचवें अध्ययन के द्वितीय उद्देशक की चौथी गाथा है - - - भिक्षु समय पर भिक्षा के लिए निकले और समय पर लौट आए। अकाल को वर्जकर जो कार्य जिस समय करने का हो, उसे उसी समय करे।
SR No.005784
Book TitleDashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy