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સિદ્ધહેમશબ્દાનુશાસન વ બૃહથ્યાસ કી ઉપાદેયતા
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स्पष्ट करने के लिए तो पाणिनीय व्याकरण पढने वालों के लिए द्व्याश्रयकाव्य का अनुशीलन परम 'उपकारक है । बहुत से स्थल तो ऐसे हैं, जिनके प्रयोग की जानकारी के लिए 'द्वयाश्रय- महाकाव्य' ही एकमात्र शरण है । इस रचना के लिए भी संस्कृत - जगत् सदा आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी का ऋणी रहेगा ।
बृहन्न्यास में महाभाष्य जैसी शैली में विचारणीय अर्थों का बडा ही गम्भीर व सूक्ष्म विवेचन किया है । सिद्धहेमशब्दानुशासन पढने वालों के लिए यह बहुत ही उपादेय है । इसकी गम्भीरता व प्रौढता को देखते हुए इसका अनुवाद अपेक्षित था । जैन समाज में सिद्धहेमशब्दानुशासन व नाना शास्त्रों के जाने-माने पण्डित श्री जगदीश भाई (गोपीपुरा सुरत - निवासी) ने यह कार्य बहुत ही प्रौढतां एवं कुशलता से किया है। पूज्य पण्डितजी का अतिशय परिश्रम व वैदुष्य विशेष रूप से श्लाघनीय है कि उन्होंने यह कठिन कार्य कर गुजराती - भाषियों के लिए बृहन्यास का अध्ययन सुगम बना दिया है। इस दिव्य अवदान (कीर्तिकर कार्य ) के लिए पण्डित श्रीजगदीश भाई बहुशः साधुवाद के पात्र हैं
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बृहन्यास में महाभाष्यगत अर्थों का भी निरूपण है । अत: उनके विवेचना-प्रसंग में समय-समय पर श्रद्धेय पण्डित जगदीश भाई मुझसे भी विचार-विमर्श करते रहे हैं । इस कार्य में सहयोग करने के लिए मुझे कुछ दिन तक उनके सूरत- स्थित आवास पर रहने का भी सौभाग्य मिला है। इसके अतिरिक्त विगत चातुर्मास्य (संवत २०६८, आश्विन मास ) के अन्तराल में उनके साथ श्री शत्रुंजय तीर्थ पालिताणा (गुजरात) में रहने का सुअवसर भी मिला है। शास्त्रचर्चा के अवसर पर मैंने देखा कि पण्डितजी की शैली है कि जब तक कोई अर्थ पूर्णतया स्पष्ट न हो जाय, तब तक आप उसके ऊपर विचारमन्थन व ग्रन्थावलोकन करते रहते हैं । पूर्णत: स्पष्ट होने पर ही उसे लिपिबद्ध करते हैं । आपकी यह श्रमशीलता व तत्त्वग्राहिता विशेष रूप से अभिनन्दनीय व वन्दनीय है। मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि श्रद्धेय पण्डित श्रीजगदीशभाई को अधिकाधिक आरोग्य, दीर्घायुष्य व अनुकूल अवसर प्रदान करें, जिससे वे इस कार्य को आगे भी उत्तरोत्तर उत्कृष्टता पूर्वक सम्पन्न करने में समर्थ हो सके ।
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हरिद्वार (उत्तरांचल राज्य)
ता. ४.७.२०१३ गुरुवार