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________________ श्री स्थानाङ्ग सूत्र सानुवाद भाग २ महावीराचार्य के गणितसारसंग्रह में भी सभी प्रकरण उपलब्ध हैं उससे इनकी विषयवस्तु का सुगमता से निर्धारण किया जा सकता है। श्रेणी व्यवहार गणितके क्षेत्र में जैन मतावलम्बियों का लाघव श्लाघनीय है, तिलोयपण्णत्ति एवं धवला के साथ ही त्रिलोकसार के अन्तः साक्ष्य के अनुसार प्राचीन काल में मात्र धाराओं पर ही एक विस्तृत ग्रन्थ उपलब्ध था। फलतः विभिन्न व्यवहारों में श्रेणी व्यवहार के प्रमुख होने के कारण शब्द के स्पष्टीकरण में उसको प्रमुखता देते हुए लिखना स्वाभाविक प्रतीत होता है । पाटीगणित शब्द तो जैन गणित सहित सम्पूर्ण भारतीय गणित में प्रचलित है। श्रीधर (७५० ई०) कृत पाटीगणित, गणितसार, गणिततिलक; भास्कर (११५० ई०) कृत लीलावती, नारायण (१३५६ ई०) कृत गणितकौमुदी, मुनीश्वर ( १६५८ ई०) कृत पाटीसार इस विषय के प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बीस परिकर्म एवं आठ व्यवहारों का वर्णन है। अतः कहा जा सकता है कि गणितसारसंग्रह की सम्पूर्ण सामग्री परिकर्म एवं व्यवहार इन दोनों में ही समाहित है। वर्तमान में व्यवहारगणित शब्द का प्रयोग पाटीगणित की उस प्रक्रिया के लिए होता है जिसमें गुणक संख्या 1. के योगात्मक खण्ड करके गुण्य से गुणा किया जाये। जिस समय बड़ी संख्याओं की गुणनविधि का प्रचलन नहीं हुआ था उस समयं गुणक संख्या को कई समतुल्य खण्डों में विभाजित कर पृथक्-पृथक् गुणा करके उस गुणनफल को जोड़ दिया जाता था, किन्तु जैनों की गुणन क्रिया में दक्षता एवं गणितीय ज्ञान की परिपक्वता को दृष्टिगत करते यह अनुमान करना निरर्थक ही है कि व्यवहार गणित के इस सन्दर्भ में आया हो सकता है। उपाध्याय, व्यवहार गणित का अर्थ Practical Arithmatics करते हैं। जब कि Srinivas lengar ने लिखा है f 'Vyavahar means applications of arithmatics to concrete problems (Applied Mathematics) ' संक्षेप में ववहारो का अर्थ पाटीगणित के व्यवहार करना उपयुक्त है। 3 परिशिष्ट ३. रज्जु : इस पारिभाषिक शब्द का विषय-सूची में उपयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अभयदेवसूरि ने इसका अर्थ • रस्सी द्वारा की जाने वाली गणनाओं से सम्बन्धित अर्थात् समतल ज्यामिति से किया था । दत्त ने इसको किंचित् विस्तृत करते हुए इसकी परिधि में सम्पूर्ण ज्यामिति को समाहित कर लिया । अग्रवाल ने लिखा है कि 'रज्जुगणित का अभिप्राय क्षेत्रगणित में पल्य सागर आदि का ज्ञान अपेक्षित है। आरम्भ में इस गणित की सीमा केवल क्षेत्र परिभाषाओं तक ही सीमित थी पर विकसित होते-होते यह समतल ज्यामिति के रूप में वृद्धिंगत हो गयी है । ' 4 आयंगर के अनुसार Rajju is the ancient Hindu name for geometry which was called Sulva in the Vedic literature. अर्थात् रज्जु रेखागणित की प्राचीन हिन्दू संज्ञा है जो कि वैदिक काल में शुल्व नाम से जानी जाती थी। कात्यायन शुल्वसूत्र में ज्यामिति को रज्जु समास कहा गया है। : प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन ने रज्जु के संदर्भ में लिखा है " 'इस प्रकार रज्जु के उपयोग का अभिप्राय जैन साहित्य में शुल्व ग्रन्थों से बिल्कुल भिन्न है। रज्जु का जैन साहित्य में मान राशिपरक सिद्धान्तों से निकाला गया है और उससे न केवल लोक के आयाम निरूपित किये गये हैं किन्तु यह माप भी दिया गया है कि उक्त रैखिक 1. त्रिलोकसार, गाथा - ९१ । 2. धारा का अर्थ Sequence है। 3. देखें सं० - १३, पृ० ३२ । 4. देखें सं०-१, पृ० ३६ । 5. देखें सं०१३, पृ० २६ । 6. रज्जुसमासं वक्ष्याम, कात्यायन शुल्वसूत्र १.१ । 417
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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