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________________ श्री स्थानाङ्ग सूत्र सानुवाद भाग २ परिशिष्ट भरतनाट्य', संगीतदामोदर, नारदी शिक्षा' आदि ग्रंथों में भी मूर्च्छनाओं का उल्लेख है। वे भिन्न-भिन्न प्रकार से हैं। भरतनाट्य में गांधार ग्राम को मान्यता नहीं दी गयी है। प्रस्तुत चार्ट से मूर्च्छनाओं के नामों में कितना भेद है, यह स्पष्ट हो जाता है। संगीतदामोदर मूलसूत्र भरतनाट्य मंगी कौरवीया हरित् रजनी 408 सारकान्ता सारसी शुद्धषड्जा उत्तरमंद्रा रजनी उत्तरा उत्तरायता अश्वक्रान्ता सौवीरा अभिरुद्गता नंदी क्षुद्र पूरका शुद्धगांधारा उत्तरगांधारा सुष्ठुतर आयामा उत्तरायता कोटिमा षड्जग्राम की मूर्च्छनाएं उत्तरमंद्रा रजनी उत्तरायता शुद्धषड्जा मत्सरीकृता अश्वक्रान्ता अभिरुद्गता मध्यमग्राम की मूर्च्छनाएं पंचमा मत्सरी सौवीरी हरिणाश्वा कलोपना शुद्धमध्या मार्गी पौरवी कृष्यका ललिता मध्यमा चित्रा रोहिणी मतंगजा सौवीरी षण्मध्या गान्धार ग्राम का अस्तित्व नहीं माना है। मृदुमध्यमा शुद्धा अन्द्रा कलावती तीव्रा गन्धारग्राम की मूर्च्छनाएं सौद्री ब्राह्मी वैष्णवी खेदरी सुरा नादावती विशाला नारदीशिक्षा उत्तरमंद्रा अभिरुद्गता अश्वक्रान्ता सौवीरा हृष्यका उत्तरायता रजनी नंदी विशाला सुमुखी चित्रा चित्रवती सुखा बला आप्यायनी विश्वचूला चन्द्रा हैमा कपर्दिनी मैत्री बार्ह 1. भरतनाट्य २८/२७-३० : आद्या ह्युत्तरमन्द्रा स्याद्, रजनी चोत्तरायता । चतुर्थी शुद्धषड्जा तु, पंचमी मत्सरीकृता । अश्वक्रान्ता तु षष्ठी स्यात्, सप्तमी चाभिरुद्गता । षड्जग्रामाश्रिता एता, विज्ञेयाः सप्त मूर्च्छनाः । सौवीरी हरिणाश्वा, स्यात् कलोपनता तथा । चतुर्थी शुद्धमध्यमा तु मार्गवी पौरवी तथा ।। हृष्यका चैव विज्ञेया, सप्तमी द्विजसत्तमाः । मध्यमग्रामजा ह्येता, विज्ञेयाः सप्त मूर्च्छनाः ।। 2. नारदीशिक्षा १ । २ । १३, १४ ।।
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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