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________________ प्रस्तावना श्री स्थानाङ्ग सूत्र - स्थानांग में लोक को चौदह रज्जु कहकर उसमें जीव और अजीव द्रव्यों का सदभाव बताया है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में भी लोक को अनन्त कहा है। तथागत बुद्ध ने कहा है-पाँच कामगुण रूप रसादि यही लोक है। और जो मानव पाँच कामगुणों का परित्याग करता है, वही लोक के अन्त में पहुंचकर वहाँ पर स्थित होता स्थानांग में भूकम्प के तीन कारण बताये हैं-१. पृथ्वी के नीचे का घनवात व्याकुल होता है। उससे समुद्र में तूफान आता है। २. कोई महेश महोरग देव अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करने के लिए पृथ्वी को चलित करता है। ३. देवासुर संग्राम जब होता है तब भूकम्प आता है। अंगुत्तरनिकाय में भूकम्प के आठ कारण बताये हैं१. पृथ्वी के नीचे की महावायु के प्रकम्पन से उस पर रही हुई पृथ्वी प्रकम्पित होती है। २. कोई श्रमण बाह्मण अपनी ऋद्धि के बल से पृथ्वी भावना को करता है। ३. जब बोधिसत्व माता के गर्भ में आते हैं। ४. जब बोधिसत्व माता के गर्भ से बाहर आते हैं। ५. जब तथागत अनुत्तर ज्ञान-लाभ प्राप्त करते हैं। ६. जब तथागत धर्म-चक्र का प्रवर्तन करते हैं। ७. जब तथागत आयु संस्कार को समाप्त करते हैं। ८. जब तथागत निर्वाण को प्राप्त होते हैं। स्थानांग में चक्रवर्ती के चौदह रत्नों का उल्लेख हैं तो दीर्घनिकायों में चक्रवर्ती के सात रत्नों का उल्लेख स्थानांग' में बुद्ध के तीन प्रकार बताये हैं-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध तथा स्वयंबुद्ध, प्रत्येकबुद्ध और बोधित। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध के तथागतबुद्ध और प्रत्येकबुद्ध ये दो प्रकार बताये हैं। : स्थानांग में स्त्री के चारित्र का वर्णन करते हुए चतुभंगी बतायी है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय10 में भार्या की सप्तभंगी बतायी है-१. वेधक के समान, २. चोर के समान, ३. अय्य के समान, ४. अकर्मकामा, ५. आलसी, ६. चण्डी, ७. दुरुक्तवादिनी। माता के समान, भगिनी के समान, सखी के समान, दासी के समान, स्त्री के समान, स्त्री के ये अन्य प्रकार भी बताये हैं। __ स्थानांग1 में चार प्रकार के मेघ बताये हैं–१. गर्जना करते हैं पर बरसते नहीं है। २. गर्जते नहीं हैं, बरसते हैं। ३. गर्जते हैं, बरसते हैं। ४. गर्जते भी नहीं, बरसते भी नहीं है। अंगुत्तरनिकाय में12 प्रत्येक भंग में पुरुष को घटाया है-१. बहुत बोलता है पर करता कुछ नहीं है। २. बोलता नहीं है पर करता है। ३. बोलता भी नहीं है करता भी नहीं। ४. बोलता भी है और करता भी है। इस प्रकार गर्जना और बरसना रूप चतुभंगी अन्य रूप से घटित की गयी है। .. स्थानांग13 में कुम्भ के चार प्रकार बताये हैं-१. पूर्ण और अपूर्ण, २. पूर्ण और तुच्छ, ३. तुच्छ और पूर्ण, ४. तुच्छ और अतुच्छ। इसी तरह कुछ प्रकारान्तर से अंगुत्तरनिकाय14 में भी कुम्भ की उपमा पुरुष चतुभंगी से घटित की है-१. तुच्छ-खाली होने पर ढक्कन होता है। २. भरा होने पर ढक्कन नहीं होता। ३. तुच्छ होता है पर ढक्कन नहीं होता। भरा हुआ होता है पर ढक्कन नहीं होता। १. जिसकी वेश-भूषा तो सुन्दर है किन्तु जिसे आर्यसत्य का परिज्ञान नहीं है, वह प्रथम कुम्भ के सदृश है। २. आर्यसत्य का परिज्ञान होने पर भी बाह्य आकार सुन्दर नहीं है तो वह द्वितीय कुम्भ के समान है। ३. बाह्य आकार भी सुन्दर नहीं और आर्यसत्य का परिज्ञान भी 1. स्थानांगसूत्र ८ 2. अंगुत्तरनिकाय, ८/७० 3. स्थानांग, ३ 4. अंगुत्तरनिकाय, ४/१४१, १४५ 5. स्थानांगसूत्र, ७ 6. दीघनिकाय, ..१७ 7. स्थानांग, ३/१५६ 8. अंगुत्तरनिकाय, २/६/५ 9. स्थानांग, २७९ 10. अंगुत्तरनिकाय, ७/५९ 11. स्थानांग, ४/३४६ • 12. अंगुत्तरनिकाय, ४/११० 13. स्थानांग, ४/३६० 14. अंगुत्तरनिकाय, ४/१०३ । - xliii
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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